याददाश्त हो रही है कमजोर या सोचने-समझने की क्षमता में गिरावट, सामने आई इसकी सबसे बड़ी वजह

ब्रेन हेल्थ, यानी मस्तिष्क की सेहत, पिछले कुछ वर्षों में एक बड़ी चिंता का विषय बन चुकी है। समय के साथ, यह समस्या बढ़ती ही जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह गंभीर स्थिति खराब लाइफस्टाइल, खानपान और अन्य कारणों के कारण उत्पन्न हो रही है। अब एक नए अध्ययन में, मस्तिष्क से संबंधित समस्याओं के बढ़ने का कारण वायु प्रदूषण को बताया गया है। हाल ही में एक रिपोर्ट में बताया गया कि लोगों की सोचने-समझने की क्षमता लगातार घट रही है, और इसका प्रभाव वयस्कों से लेकर बुजुर्गों तक देखा जा सकता है। इसके साथ ही, बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी याददाश्त में कमी आने की भी शिकायत की है। वैज्ञानिकों ने इस समस्या का मुख्य कारण बढ़ते वायु प्रदूषण को माना है।

वायु प्रदूषण का बढ़ता स्तर मस्तिष्क के लिए ठीक नहीं

ब्रिटेन में हाल ही में किए गए अध्ययन में विशेषज्ञों ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित किया कि वायु प्रदूषण का लेवल तेजी से बढ़ रहा है। हालांकि, वायु प्रदूषण को आमतौर पर फेफड़ों और दिल की बीमारियों से जोड़ा जाता रहा है, लेकिन अब यह मस्तिष्क पर भी नेगेटिव प्रभाव डाल रहा है। प्रदूषित हवा में थोड़े समय तक सांस लेने से भी सोचने-समझने की क्षमता और याददाश्त पर बुरा असर पड़ सकता है।

क्या कहता है अध्ययन?

बर्मिंघम और मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन किया, जिसमें वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर और खासकर पीएम 2.5 के प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया गया। पीएम 2.5 एक प्रकार का सूक्ष्म प्रदूषक कण है, जो स्वास्थ्य के लिए सबसे ज्यादा नुकसानदायक होता है। 2015 में किए गए एक अध्ययन से पता चला कि वायु प्रदूषण के कारण करीब 42 लाख लोगों की जान चली गई थी। अब, यह केवल फेफड़ों या दिल की बीमारियों तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह मस्तिष्क की कार्यक्षमता पर भी प्रभाव डाल रहा है।

ध्यान की कमी

वायु प्रदूषण के प्रभावों पर किए गए एक अध्ययन में यह सामने आया कि जो लोग प्रदूषित हवा में अधिक समय बिताते हैं, उनके लिए ध्यान केंद्रित करना और भावनाओं पर नियंत्रण रखना भी मुश्किल हो जाता है। यह स्थिति उनके रोजमर्रा के कामों को भी प्रभावित कर सकती है, जिससे उनकी मानसिक स्थिति पर गहरा असर पड़ता है।

अध्ययन में क्या पता चला?

इस अध्ययन में 26 वयस्कों को दो समूहों में बांटकर परीक्षण किया गया। एक समूह प्रदूषित हवा में रहता था, जबकि दूसरा समूह स्वच्छ हवा में सांस लेता था। परिणामस्वरूप, जो लोग प्रदूषित वातावरण में रहते थे, उन्हें समय के साथ ध्यान केंद्रित करने, आत्म नियंत्रण और मानसिक संतुलन में दिक्कतें बढ़ती गईं। विशेषज्ञों ने पाया कि वायु में मौजूद महीन कण (पीएम) दिमागी क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इस अध्ययन से यह भी पता चला कि कुछ घंटे भी प्रदूषित हवा में रहने से मस्तिष्क पर कई प्रकार के नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं।

डब्ल्यूएचओ की सिफारिश

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी इस मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि हवा में पीएम 2.5 का स्तर एक दिन में 15 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए। पूरे वर्ष में यह स्तर 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से कम होना चाहिए। अगर यह स्तर बढ़ता है, तो यह मस्तिष्क से संबंधित गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकता है।

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