बिहार के सुपौल में जमीन विवाद का खूनी संघर्ष, एक की मौत, 1 घायल

बिहार के सुपौल में जमीन को लेकर दो भाईयों के बीच हुई लड़ाई में एक व्यक्ति की मौत हो गई जबकि दूसरा घायल हो गया है। घटना के बाद से आरोपी फरार हैं। पुलिस ने धरपकड़ शुरू कर दी है। प्रमोद यादव और विनोद यादव के बीच विवाद तब और बढ गया जब दोनों के बीच फायरिंग होने लगी। इस गोलीबारी में प्रमोद के साले की मौत हो गई है। जबकि खुद प्रमोद अस्पताल में जख्मी हालत में हैं और उनका इलाज चल रहा है। यह घटना छतरपुर पुलिस स्टेशन के डेहरिया गांव की है। 

जमीन विवाद को लेकर हुई गोलीबारी में एक गोली प्रमोद यादव के साले रामकुमार यादव  को गोली भी लगी। गोली लगने के कारण मौका-ए-वारदात पर ही रामकुमार की मौत हो गई थी। जबकि 45 साल के प्रमोद यादव जख्मी हो गए हैं।  फिलहाल उनका इलाज सुपौल के जिला अस्पताल में हो रहा है। 

गोली लगने से आस-पास के इलाके में हड़कंप मच गया। घटना के बारे में पुलिस को सूचित किया गया। घटनास्थल पर पहुंचकर पुलिस ने जायजा लिया और लाश को अपने कब्जे में किया। पुलिस ने बताया कि यह घटना दो भाइयों के बीच चल रहे जमीन विवाद का परिणाम है। बीते दो सप्ताह पहले भी इनके विवाद को सुलझाने के लिए गांव के स्तर पर प्रयास किया गया था। इसके लिए गांव में ही बैठक हुई थी जिसमें दोनो पक्ष शामिल भी हुए थे। 

पुलिस ने बताया कि दोनों भाइयों के बीच 2 कट्ठा जमीन को लेकर बीते 10 साल से विवाद चल रहा है। घरवालों ने बताया है कि इस झगड़े को लेकर कोर्ट में मामला भी चल रहा है। जिसका फैसला आना बाकी है। मंगलवार को बिनोद यादव ने विवादित जमीन पर घर बनाना शुरू कर दिया था। इस कारण दोनो गुटों में लड़ाई शुरू हो गई। इनके बीच हुई गोलीबारी में एक की मौत हो गई जबकि दूसरा बुरी तरह घायल हो गया है।

एसएचओ शिव शंकर ने बताया कि पोस्टमार्टम के बाद हमने शव को परिवार वालों को सौंप दिया है। हालांकि अब तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई है, लेकिन हमने मामले को अलग-अलग पहलुओं से जांचना परखना शुरू कर दिया है। इसके बाद अगर शिकायत दर्ज कराई जाती है तो हम कार्रवाई को तेज करेंगे। आपको बता दें कि कोसी और सीमांचल की भूमि पर जमीन से जुड़े विवाद पहले भी होते रहे हैं। इनमें बडी संख्या में लोग भी मारे गए हैं। साल 1967 में सीमांचल  के पूर्णिया में जमीन को लेकर एक बड़ा नरसंहार हुआ था। इस घटना में रूपसपुर गांव के कम से कम 14 आदिवासी लोगों को मार दिया गया था। साल 1998 में पूर्णिया में एक बार फिर इस तरह की घटना हुई थी जहां करीब 9 आदिवासी मार दिए गए थे।

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