छल करने के कारण देवी वृंदा ने दिया था भगवान विष्णु को श्राप, जानिए पौराणिक कथा
भगवान विष्णु ने विभिन्न अवतार लेकर संसार की रक्षा की थी। भगवान विष्णु से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक बार विष्णु जी को देवी वृंदा ने श्राप दिया था। बाद में देवी वृंदा ने ही भगवान विष्णु को उस श्राप से मुक्त किया था, जिस स्थान पर उन्हें इस श्राप से मुक्ति मिली थी, वहां एक प्रसिद्ध मंदिर स्थापित है।
भगवान विष्णु के इस मंदिर को मुक्तिनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह नेपाल की मुक्तिनाथ घाटी में मस्तंग में माउंट थोरोंग ला पर स्थित है। मुक्तिनाथ धाम मंदिर समुद्र तल से लगभग 3,800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह दुनिया के सबसे ऊंचे मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर में भगवान विष्णु शालिग्राम के रूप में स्थापित है।
मुक्ति नाथ धाम नेपाल से जुड़ी कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, देवी वृंदा के पति जालंधर के कारण संपूर्ण ब्रह्मांड में अराजकता फैल गई थी। इससे परेशान होकर देवता, भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे जालंधर से सभी की रक्षा करने को कहा। सभी देवताओं ने कहा कि जालंधर को मारना बहुत जरूरी है। लेकिन उसे मारना इतना आसान नहीं है, क्योंकि उसे कोई नहीं हरा सकता क्योंकि उसकी पत्नी पतिव्रता है।
देवी वृंदा ने दिया भगवान विष्णु को श्राप
भगवान विष्णु ने इन सभी देवताओं की रक्षा की और एक लीला रची और वृंदा के सामने उसके पति जालंधर का रूप धारण करके पहुंच गए। वृंदा भगवान विष्णु की लीला को समझ नहीं पाई और उसने उन्हें अपना पति समझ कर उनके चरण छू लिए। जैसे ही वृंदा ने पैर छुए, देवताओं और जालंधर के बीच चल रहे युद्ध में जालंधर मारा गया। जब वृंदा को यह बात पता चली, तो उसने पूछा कि तुम कौन हो? तब भगवान विष्णु ने अपना असली रूप धारण कर लिया।
जैसे ही भगवान विष्णु अपने असली रूप में आए, तो वृंदा ने दुखी मन से कहा, प्रभु मैं सदैव आपकी पूजा करती आई हूं, फिर आपने मुझे यह धोखा क्यों दिया? जाओ, मैं तुम्हें पत्थर बन जाने का श्राप देती हूं। भगवान विष्णु ने अपनी परम भक्त वृंदा का सम्मान किया और पत्थर बन गए।
देवी लक्ष्मी ने वृंदा से किया आग्रह
जब यह बात माता लक्ष्मी को पता चली, तो वह वृंदा के पास गईं और उनसे कहा कि आप मेरे पति को माफ कर दीजिए और अपना श्राप वापस ले लीजिए, नहीं तो सृष्टि का संचालन बंद हो जाएगा। इस पर देवी वृंदा ने अपना श्राप वापस लिया और अपने पति के वियोग में अपना शरीर त्याग दिया और सती हो गईं।
जब सती का जन्म हुआ, तो उनके पंचतत्व शरीर से राख प्रकट हुई और उससे एक वृक्ष उग आया। भगवान विष्णु ने उस पेड़ का नाम तुलसी रखा और उसे आशीर्वाद दिया कि देवी तुलसी पूरे विश्व में शालिग्राम व्रिगह के साथ अर्धांगिनी के रूप में पूजी जाएंगी। जिस स्थान पर देवी वृंदा ने देवी लक्ष्मी के कहने पर विष्णु जी को श्राप से मुक्त किया था वह स्थान आज मुक्तिनाथ धाम के नाम से जाना जाता है।