यूपी के सभी थानों में लगेंगे सीसीटीवी कैमरे

  • योगी मंत्रिपरिषद ने पुलिस की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाने के लिए प्रस्ताव को दी मंजूरी
  • प्रदेश के सभी सर्किल मुख्यालयों एवं जनपदीय थानों में स्थापित किए जाएंगे 5 कैमरे
  • 144.90 करोड़ रुपए की लागत से सीसीटीवी कैमरा परियोजना का होगा क्रियान्वयन
  • सीसीटीवी में 12 माह तक का फुटेज स्टोरेज किए जाने की होगी व्यवस्था

लखनऊ, पुलिस की कार्यप्रणाली में और पारदर्शिता लाने के लिए योगी सरकार ने शुक्रवार को मंत्रिपरिषद की बैठक में महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। इसके अनुसार मंत्रिपरिषद ने प्रदेश के सभी थानों में सीसीटीवी कैमरे स्थापित करने से संबंधित प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है। शुक्रवार को हुई मंत्रिपरिषद की बैठक के बाद प्रदेश के वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने पारित हुए प्रस्तावों के विषय में इसकी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि देश की सभी जेलों में कैमरे लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल फाइल हुई थी। इसकी जरूरत को देखते हुए यूपी में इसे लागू किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2020 में सुप्रीम कोर्ट में परमवीर सैनी बनाम बलजीत सिंह एक अन्य के मामले में पूरे देश में सीसीटीवी लगाने के लिए अपील की गई थी।

हर वक्त कैमरों में रहेगी पुलिस की कार्यवाही

वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने बताया कि मंत्रिपरिषद द्वारा पारित किए गए प्रस्ताव के अनुसार प्रदेश के सभी सर्किल मुख्यालयों एवं जनपदीय थानों में 5 कैमरों की व्यवस्था की जाएगी। इन कैमरों में 12 माह तक का फुटेज स्टोरेज रहेगा। उन्होंने बताया कि पहले इस परियोजना की कुल लागत 359 करोड़ रुपए थी, लेकिन अब जिस प्रस्ताव को मंत्रिपरिषद ने पास किया है, उसकी लागत 144.90 करोड़ रुपए है। मंत्रिपरिषद के इस निर्णय से पुलिस की कार्यप्रणाली और अधिक पारदर्शी होगी। थानों की कार्यवाही हर वक्त कैमरे की जद में रहेगी।

40 साल बाद टेबल की जाएगी रिपोर्ट

योगी मंत्रिपरिषद ने 40 साल पुरानी एक जांच समिति की रिपोर्ट को टेबल करने का निर्णय लिया है। वित्त मंत्री ने बताया कि डॉ. शमीम अहमद खान एवं उनके समर्थकों ने ईदगाह में गड़बड़ी पैदा करने के लिए रणनीति बनाई थी। उस वक्त 70 हजार नमाजी ईद-उल-फितर की नमाज पढ़ रहे थे। उनकी मंशा थी कि प्रशासन को बदनाम करके इसकी जिम्मेदारी बालमीकि समाज और पंजाबी हिंदुओं पर डालकर अपनी छवि सुधार सकें। इस मामले की जांच के लिए एक सदस्यीय जांच समिति का गठन किया गया, जिसने 20 नवंबर 1983 को सौंप दी गई। पूर्व सरकारों द्वारा इसकी रिपोर्ट को सदन में रखने की अनुमति नहीं दी गई। योगी सरकार के संज्ञान में जब यह मामला आया तब इसे टेबल करने का निर्णय लिया गया।

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