समस्त जीव जंतुओं की रक्षक हैं मां शैलपुत्री
नवरात्रि के प्रथम दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप माता शैलपुत्री की उपासना की जाती है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण मां का नाम शैलपुत्री पड़ा।
माता शैलपुत्री का जन्म शैल या पत्थर से हुआ, इसलिए इनकी पूजा से जीवन में स्थिरता आती है। मां शैलपुत्री करुणा और स्नेह का प्रतीक हैं।
मां शैलपुत्री सभी जीव-जंतुओं की रक्षक मानी जाती हैं। माता शैलपुत्री अत्यंत सौम्य हैं और अपने भक्तों को वरदान देती हैं। उपनिषदों में मां को हेमवती भी कहा गया है।
मां शैलपुत्री की उपासना से धन-धान्य, ऐश्वर्य, सौभाग्य तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है। मां की उपासना से साहस, भय से मुक्ति, कार्य में सफलता, यश, कीर्ति प्राप्त होती है।
मां के माथे पर चंद्रमा सुशोभित है। मां शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। माता का वाहन वृषभ होने के कारण इन्हें वृषारूढ़ा कहा गया।
मान्यता है कि नवरात्र के प्रथम दिन मां शैलपुत्री के चरणों में गाय का घी अर्पित करने से आरोग्य प्राप्त होता है। मां शैलपुत्री को सफेद रंग की वस्तुएं काफी प्रिय हैं।
चंदन-रोली से टीका कर मां को श्वेत वस्त्र और श्वेत पुष्प अर्पित करें। सफेद रंग की मिठाई का भोग भी मां को पसंद है। मां की उपासना में दुर्गा सप्शती और दुर्गा चालीसा का पाठ करें।