मनुष्य की मंशा
एक बार गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ पद यात्रा पर थे। एक शाम वे सब बहुत थक गये। तथागत गौतम ने कहा कि यहां इस जंगल में रात को रुक जाते हैं।
गर्मी का मौसम है, हरी घास पर लेट जाते हैं, सुबह होगी तो फिर से चल देंगे। सुबह जागे तो एक आवाज आई और सब चौंक गये। एक युवक नीचे गिरे पत्तों को एक बड़े बर्तन में जमा कर रहा था।
उस युवक ने जब अपने लिये पत्तियां जमा कर लीं तो गौतम बुद्ध ने उसके नजदीक जाकर उसके साथ वार्तालाप किया और उस युवक ने वहां पर एक-दो पेड़ों की तरफ संकेत करके बताया कि इनकी पत्तियां भोजन और जल दोनों की कमी पूरा करती हैं।
यह कहकर वो युवक चला गया। युवक जब दूर चला गया तो शिष्यों ने पूछा कि तथागत उस साधारण देहाती मजदूर से इतनी घनिष्ठता से वार्तालाप भला क्यों?
महात्मा बुद्ध ने कहा कि तुमने देखा, वह कितना संतोषी है, उसने बस पेड़ों द्वारा त्याग दिये गये पत्तों के अलावा एक हरा पत्ता तक नहीं तोड़ा।
यही इसकी साधना है जो मेरे अंत:स्थल को छू गई। ‘मानव’ क्या है, यह महत्वपूर्ण नहीं; परन्तु उसकी नीयत में क्या है, यह बहुत महत्वपूर्ण है!