कर्म से स्वर्ग-नरक

एक बार एक वृद्ध पुरुष की मृत्यु हो गई। उसके पुत्र ने यह विचार किया कि मेरे पिता की आत्मा को स्वर्ग में स्थान मिल जाए। इसके लिए वो युवक महात्मा बुद्ध के पास गया और अपने मन की बात उनसे कही।

बुद्ध से कहा, ‘कृपया कोई ऐसा उपाय बताएं ताकि मेरे पिता की आत्मा को स्वर्ग में स्थान मिले।’ बुद्ध ने उसे कहा, ‘ऐसा करो, तुम दो मिट्टी के घड़े ले आना, एक में पत्थर भरकर और दूसरे में घी।

उन दोनों घड़ों को नदी के बीच ले जाकर फोड़ देना, उसके बाद जो परिणाम आए, मुझे आकर बताना।’ युवक ने वही किया जो महात्मा बुद्ध ने उसे कहा था। जब उसने पत्थर वाले घड़े को फोड़ा तो सभी पत्थर पानी में डूब गए।

वहीं जब उसने घी वाला घड़ा तोड़ा तो वह भी फूट गया और नदी का बहाव घी को अपने साथ बहाकर ले गया। अगले दिन वह व्यक्ति पुन: बुद्ध के पास आया और उसने सारी बात उन्हें बता दी।

बुद्ध ने उसे कहा, ‘क्या आप कोई ऐसा उपाय कर सकते हो कि जिससे पत्थर पानी में तैरने लगे और घी सतह पर ही रुक जाए?’ युवक ने जवाब दिया, ‘यह तो असंभव है, पत्थर तो डूबेंगे ही और घी भी बहते पानी के साथ बह जाएगा।’

इस पर महात्मा बुद्ध ने जवाब दिया, ‘तुम्हारे पिता की आत्मा के साथ भी ऐसा ही होगा। अगर उन्होंने अच्छे कर्म किए हैं तो उनकी आत्मा स्वर्ग की ओर प्रस्थान करेगी अन्यथा नरक की ओर, किसी कर्मकांड से उनके कर्म बदले नहीं जा सकते।’

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