अज्ञान का दमन

श्यामाकांत बंदोपाध्याय बंगाल में बाघ स्वामी के नाम से विख्यात थे। वह अपने हाथों से ही बाघों के साथ लड़ते थे और उन्हें परास्त कर देते थे। अपने बचपन के दिनों में परमहंस योगानंद का मन बाघ स्वामी से मिलने काे हुआ।

एक दिन वह अपने एक मित्र चंडी के साथ कलकत्ता के पास भवानीपुर में निवास कर रहे बाघ स्वामी के पास पहुंच ही गए। बाघ स्वामी ने दोनों बालकों को बाघों के साथ अपनी लड़ाई के बहुत से किस्से सुनाए।

उन्होंने बालकों को बाघ से हुई लड़ाई का एक किस्सा कुछ यूं सुनाया-एक बार जब मैंने बंगाल रॉयल टाइगर ‘राजा बेगम’ को परास्त करके उसे वापस पिंजरे में बंद कर दिया तो इस लड़ाई में मुझे काफी चोटें आई और शरीर में गहरे जख्म हो गए, जिन्हें ठीक होने में काफी वक्त लगा।

उसी दौरान एक संत मेरे पास आए और कहने लगे-बाघों का दमन बहुत हो गया। मेरे साथ आओ, मैं तुम्हें मानव-मन के जंगलों में विचरने वाले अज्ञान के पशुओं का दमन करना सिखाऊंगा। उनका यह वाक्य मेरे हृदय में गहराई तक उतर गया। मैं समझ गया कि यह सन्त ही मेरे सद‍्गुरु हैं।

उन्होंने मुझे आध्यात्मिक दीक्षा दी। बस मैंने तब से ही बाघों के साथ लड़ना बंद कर दिया और अपने गुरु के निर्देशन में आध्यात्मिक साधना शरू कर दी।

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