होलिका दहन पर सुबह से रात तक भद्रा, नहीं होगा चंद्रग्रहण का असर

 इस वर्ष होलिका दहन पर सुबह से रात तक भद्रा का असर रहेगा। भद्रा काल में होलिका दहन करने को अशुभ माना जाता है, इसलिए भद्रा काल समाप्त होने के पश्चात रात्रि 11.28 बजे से होलिका दहन किया जाएगा।

अगले दिन रंगों का पर्व धुलेंडी पर चंद्रग्रहण है। यह चंद्रग्रहण विदेश में दिखाई देगा, भारत में दिखाई न देने से चंद्रग्रहण का असर नहीं होगा। सूतक काल भी नहीं माना जाएगा।

13 मार्च की देर रात और 14 मार्च की सुबह तक चंद्रग्रहण

  • रायपुर में महामाया मंदिर के पुजारी पं. मनोज शुक्ला के अनुसार, इस वर्ष 2025 का पहला चंद्रग्रहण 13 मार्च की देर रात और 14 मार्च की सुबह अमेरिका सहित अन्य देशों में दिखाई देगा। भारत में दिखाई नहीं देने से मंदिरों में सूतक नहीं लगेगा।
  • ग्रह नक्षत्रों पर पड़ने वाले प्रभाव से मिथुन, वृश्चिक, मकर, मीन राशि वालों को सावधान रहना होगा। ग्रहण और भद्रा जीवन को प्रभावित करते हैं। ज्योतिष विज्ञान में इन दुष्प्रभावों को कम करने के उपाय भी बताए गए हैं।

7 मार्च से होलाष्टक, 13 को होलिका दहन पर भद्रा

होली के आठ दिन पूर्व लगने वाला होलाष्टक 7 मार्च से शुरू हो रहा है। होलिका दहन 13 मार्च को किया जाएगा।13 को सुबह 10.36 से पूर्णिमा तिथि प्रारंभ होकर 14 मार्च को 12.15 बजे तक रहेगी। चूंकि उदया तिथि की पूर्णिमा 14 को है, लेकिन पूर्णिमा दोपहर तक तीन प्रहर से कम है।

होलिका दहन पूर्णिमा तिथि पर

भद्रा रहित काल में किए जाने की मान्यता होने से 13 मार्च की रात्रि में होलिका दहन किया जाएगा। भद्राकाल सुबह 10.36 बजे से प्रारंभ होकर रात्रि 11.27 बजे तक रहेगा। भद्राकाल समाप्त होने के बाद रात्रि में 11.28 बजे से देर रात्रि 12.15 बजे तक होलिका दहन किया जा सकेगा। 14 मार्च को होली की धूम मचेगी।

  • पूर्णिमा तिथि आरंभ : 13 मार्च प्रातः 10:36 से
  • पूर्णिमा तिथि समाप्त : 14 मार्च, दोपहर 12:15 तक

होलिका दहन का मुहूर्त मात्र 47 मिनट

इस वर्ष होलिका दहन के लिए मात्र 47 मिनट ही शुभ मुहूर्त है। 13 मार्च को भद्रा प्रातः 10:36 से आरंभ होकर मध्य रात्रि 11:27 तक पृथ्वी लोक पर रहेगी। भद्रा समाप्त होने के बाद रात्रि 11:28 से रात्रि 12:15 बजे के बीच दहन किया जा सकेगा।

शनिदेव की बहन है भद्रा

शास्त्रों में भद्रा को सूर्य की पुत्री और शनिदेव की बहन माना गया है। भद्रा का स्वभाव क्रोधी है। स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ब्रह्मा ने कालगणना में स्थान दिया है। भद्रा तीनों लोक में भ्रमण करती हैं, जब भद्रा मृत्यु लोक में होती हैं, तो इसे अशुभ माना जाता है। इस समय शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।

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