पीएम मोदी के रूस यात्रा से विश्व की राजनीति में हलचल हुई तेज, चीन ने किए कई सवाल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया रूस यात्रा से विश्व की राजनीति में हलचल पैदा हो गई है। कोई यह यात्रा अमेरिका के लिए चिंताजनक बता रहा तो कोई कुछ। आइए जानते हैं मोदी की मॉस्को यात्रा पर विदेशी मीडिया का क्या रुख है। 

गौरतलब है, पिछले महीने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में लगातार तीसरी बार शपथ लेने के बाद यह मोदी की पहली द्विपक्षीय यात्रा है। परंपरागत रूप से पीएम मोदी ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत के पड़ोसी देशों रूस और ऑस्ट्रिया को चुना है, जिसमें भारत के पड़ोस को विदेश नीति की प्राथमिकता के रूप में महत्व दिया गया है।

गले मिलना और…: मोदी तथा पुतिन की तस्वीर पर चीनी मीडिया ने ली चुटकी

चीन की मीडिया ने भी रूसी यात्रा पर लगातार नजर रखी। उसने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के गले मिलने की एक तस्वीर को लेकर सवाल खड़ा किया है। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की एक रिपोर्ट में कहा गया, शक्ति कूटनीति के खेल में शब्दों की तुलना में अक्सर आपके शारीरिक हावभाव अधिक खुलासा करते हैं। बीजिंग, नई दिल्ली और मॉस्को के नेताओं के मिलने की दो तस्वीरों ने उनके त्रिपक्षीय संबंधों की स्थिति को प्रभावी ढंग से व्यक्त किया है।

रिपोर्ट में आगे कहा गया, जहां पीएम मोदी गर्मजोशी और गले मिलने की कूटनीति के लिए प्रसिद्ध हैं। वहीं, चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग और रूसी राष्ट्रपति पुतिन को हाथ मिलाने के लिए ज्यादा जाना जाता है। शायद यही कारण है कि ये तस्वीरें अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में आ गई हैं। इससे यूक्रेन के खिलाफ पुतिन की आक्रामक नीति को संभव बनाने में बीजिंग और नई दिल्ली की भूमिका की जांच करने के लिए वाशिंगटन और उसके सहयोगी देशों को प्रेरित किया है।

इसमें यह भी कहा गया, अमेरिका में नाटो शिखर सम्मेलन की पूर्व संध्या पर यह चर्चा हो रही थी कि यूक्रेन की युद्ध जीतने में कैसे मदद की जाए। वहीं दूसरी ओर, उसी समय मोदी मॉस्को में मौजूद थे। ऐसे में भारतीय पीएम का वहां होना निस्संदेह पुतिन के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन था। यह दिखाता है कि व्हाइट हाउस के बढ़ते दबाव को नजरअंदाज कर मोदी का भारत, अमेरिका और रूस के बीच किसी एक का पक्ष नहीं ले रहा है।

अमेरिका की लगातार कोशिश हुई विफल: ग्लोबल टाइम्स

चीन की एक अन्य मीडिया रिपोर्ट में भी पीएम मोदी की इस यात्रा को अमेरिका के लिए एक निराशाजनक कदम बताया है। ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट में विश्लेषकों का कहना है कि रूस और भारत के बीच घनिष्ठ संबंधों का मतलब है कि यूक्रेन संकट शुरू होने के बाद से रूस को रोकने और अलग-थलग करने के अमेरिका के निरंतर प्रयास विफल हो गए हैं। हालांकि, भारत की संतुलित कूटनीति न केवल अपने हितों के अनुरूप है, बल्कि वैश्विक रणनीतिक संतुलन में भी योगदान देती है, जिसे लंबे समय से अमेरिकी नेतृत्व से चुनौती मिली है।

चाइना फॉरेन अफेयर्स यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर ली हैदोंग ने ग्लोबल टाइम्स से कहा कि मोदी की रूस यात्रा प्रमुख शक्तियों के बीच विदेश नीति के संतुलन को दिखाती है।

भारत ने मॉस्को के साथ बनाए रखे अच्छे संबंध: अमेरिकी मीडिया

अमेरिका की मीडिया रिपोर्ट में पीएम मोदी की मॉस्को यात्रा को नाटो देशों की बैठक के खिलाफ बताया गया है। दरअसल, सोमवार को पहले नाटो शिखर सम्मेलन की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन के लिए 38 विभिन्न देशों के नेता वाशिंगटन में एकत्र हुए थे। इस दौरान लगातार यूक्रेन को समर्थन देने पर चर्चा हुई थी। 

द न्यूयॉर्क टाइम्स की मीडिया रिपोर्ट में कहा गया कि पश्चिमी सरकारें भारत और दुनिया भर की कई अन्य सरकारों को पुतिन के युद्ध के खिलाफ सार्वजनिक रुख अपनाने के लिए राजी करने में असफल रही हैं। मोदी ने रूस के आक्रमण की निंदा करने से परहेज किया और इसके बजाय शांति के लिए सामान्य आह्वान किए। उसने मॉस्को के साथ मधुर संबंधों को बनाए रखा, जो शीत युद्ध के दिनों से ही कायम हैं।

जंग पर सरेआम बोले पीएम मोदी

वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट में कहा गया कि पीएम मोदी ने सरेआम जंग का मसला उठाया। इसमें कहा गया कि रूस द्वारा कीव में बच्चों के एक अस्पताल सहित कई जगहों पर हमले शुरू करने के कुछ घंटों बाद भारतीय पीएम मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को गले लगाते हुए तस्वीरें साझा कीं। बाद में क्रेमलिन ने रूसी नेता के घर के गोल्फ कार्ट में मौजूद दोनों नेताओं की तस्वीरें साझा कीं।

अगले दिन, मोदी ने निजी वार्ता से पहले टेलीविजन पर दिए गए अपने बयान में हमले को लेकर पुतिन की सार्वजनिक रूप से आलोचना की और कहा कि ‘जब निर्दोष बच्चों को मारा जाता है, जब हम निर्दोष बच्चों को मरते हुए देखते हैं, तो यह दिल दहला देने वाला होता है।’

पीएम मोदी के इस कदम से दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा मिला: रूसी मीडिया

रूस के न्यूज चैनल आरटी ने एक रिपोर्ट में कहा कि साल 2022 में यूक्रेन संघर्ष बढ़ने के बाद पश्चिमी साझेदारों की खुली आलोचना के बावजूद भारत ने साहसपूर्वक रूस से कच्चे तेल की खरीद जारी रखी। इस कदम ने दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार 65.70 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है। इसका मुख्य कारण भारत से निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में फार्मास्यूटिकल्स, ऑर्गेनिक केमिकल्स, इलेक्ट्रिकल मशीनरी और मैकेनिकल उपकरण, लोहा और इस्पात शामिल हैं, जबकि रूस से आयात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में तेल और पेट्रोलियम उत्पाद, उर्वरक, खनिज संसाधन, कीमती पत्थर और धातु, वनस्पति तेल आदि शामिल हैं।

रिपोर्ट में कहा गया, यह पिछले वर्ष की तुलना में 33 फीसदी की उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है, जो भारत-रूस साझेदारी की लचीलापन और ताकत को दर्शाता है। यह दोनों नेताओं द्वारा 2025 तक द्विपक्षीय व्यापार में हासिल किए जाने वाले 30 अरब डॉलर के लक्ष्य से भी दोगुना है।

प्रधानमंत्री मोदी की मॉस्को यात्रा रूस के साथ अपने बहुआयामी संबंधों को बढ़ाने के लिए भारत की दृढ़ प्रतिबद्धता को दिखाती है। चूंकि दोनों देश कठिन चुनौतियों से निपट रहे हैं, इसलिए मॉस्को वार्ता सभी रणनीतिक क्षेत्रों में गहन सहयोग के लिए एक मार्ग बनाने के लिए तैयार है, जो दोनों देशों के बीच साझेदारी की स्थायी ताकत की पुष्टि करती है।

मोदी ने पुतिन के साथ बनाया तालमेल: द गार्डियन

ब्रिटेन के अखबार ‘द गार्डियन’ ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूसी यात्रा पर बात की। रिपोर्ट में कहा गया कि भारत-रूस के बीच संबंध बहुत गहरे हैं, जो शीत युद्ध के समय से चले आ रहे हैं। रूस लंबे समय से भारत को हथियारों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता रहा है। 2014 में चुने जाने के बाद से मोदी ने पुतिन के साथ काफी तालमेल बनाया है। दोनों नेताओं के बीच 20 से अधिक मुलाकातें हो चुकी हैं।

हालांकि, फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमला करने के रूसी राष्ट्रपति के फैसले ने भारत और मॉस्को के संबंधों पर कई बार आश्चर्यजनक रूप से दबाव डाला। भारत को पुतिन और पश्चिम दोनों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने के लिए एक मुश्किल रास्ते पर चलने के लिए मजबूर होना पड़ा। 

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