शहीद विधवा को आर्थिक लाभ देने पर बॉम्बे HC की टिप्पणी, जानिए क्या कहा….

महाराष्ट्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में ड्यूटी के दौरान शहीद हुए सेना के एक मेजर के परिवार को वित्तीय लाभ देने का फैसला किया है। राज्य सरकार ने बुधवार को बॉम्बे हाई कोर्ट को इसकी जानकारी दी। दरअसल, शहीद अनुज सूद की पत्नी आकृति सूद ने 2019 और 2020 के दो सरकारी प्रस्तावों के तहत पूर्व सैनिकों के लिए लाभ (मौद्रिक) की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया था।

राज्य सरकार ने पहले किया था इनकार

याचिका में तर्क दिया गया कि उनके दिवंगत पति की इच्छा के अनुसार परिवार पिछले 15 वर्षों से महाराष्ट्र में रह रहा है। उन्होंने कहा कि सूद हमेशा महाराष्ट्र के पुणे में रहने का इरादा रखते थे। इस दौरान राज्य सरकार ने शुरू में कहा था कि सूद का परिवार लाभ और भत्ते के लिए पात्र नहीं है क्योंकि संकल्प केवल उन लोगों के लिए थे जो महाराष्ट्र में पैदा हुए थे या जो 15 वर्षों से लगातार यहां रह रहे हैं। आकृति सूद ने अपनी याचिका में 26 अगस्त, 2020 को सरकार के फैसले को चुनौती दी थी।

राज्य सरकार को लगाई थी फटकार

इस पर न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी और न्यायमूर्ति फिरदोश पूनीवाला की खंडपीठ ने पहले सरकार को फटकार लगाई थी और सूद के मामले को विशेष और असाधारण मामले के रूप में मानने और लाभ देने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि अगर सरकार ऐसा नहीं कर सकती तो कोर्ट उचित आदेश पारित करेगा।

बुधवार को महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ ने पीठ को बताया कि सरकार ने विशेष मामले के तौर पर सूद के परिवार को लाभ देने का फैसला किया है। सरकार ने आकृति को एक करोड़ रुपये (आकृति को 60 लाख रुपये और सूद के पिता को 40 लाख रुपये) और 9,000 रुपये मासिक भुगतान देने का फैसला किया है।

एकनाथ शिंदे सरकार की कोर्ट ने की सराहना

पीठ ने सरकार के फैसले की सराहना की और कहा कि सरकार ने कठिन परिस्थिति का सम्मान किया है। अदालत ने कहा, ‘ये वास्तविक मानवीय पीड़ाएं हैं। हमेशा एक अपवाद होता है। यह एक विशेष मामला है। अदालत ने कहा, ‘हम याचिकाकर्ता के मामले को विशेष मामला मानने और लाभ देने में मुख्यमंत्री और राज्य सरकार द्वारा अपनाए गए रुख की अत्यधिक सराहना करते हैं।’

पीठ ने यह कहते हुए याचिका का निपटारा कर दिया कि राशि यथाशीघ्र वितरित की जाएगी। उल्लेखनीय है कि मेजर सूद ने 2 मई, 2020 को अपनी जान गंवा दी, जब वह नागरिक बंधकों को आतंकवादी ठिकानों से बचा रहे थे। उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया।

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