केरल HC ने बिना खेल के मैदान वालें स्कूलों को लेकर की अहम टिप्पणी, जानिए क्या कहा…

केरल हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि जिन स्कूलों में खेल के मैदान नहीं हैं, उन स्कूलों पर ताला लगाया जाना चाहिए। अदालत ने अहम टिप्पणी की कि खेल बच्चों का मौलिक अधिकार है और शिक्षा को सिर्फ कक्षाओं तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए। जिस तरह पठन-पाठन बच्चे के लिए जरूरी है, बच्चे के लिए उतना ही जरूरी खेल शिक्षा भी है। इससे बच्चों के सर्वांगीण विकास की भावना को पूरा किया सकता है।
  
न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन मामले की सुनवाई कर रहे थे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केरल में कई स्कूल प्रशासन राज्य शिक्षा नियमों (केईआर) के विपरीत कार्य कर रहे हैं। अदालत ने यह भी माना कि  केईआर ने राज्य के स्कूलों में खेल के मैदानों में आवश्यक सुविधाओं को स्पष्ट नहीं किया है और यही वजह है कि स्कूल प्रबंधन द्वारा इसका फायदा उठाया जाता है।

बार एंड बेंच में छपि रिपोर्ट के अनुसार, 11 अप्रैल को सुनाए अपने फैसले में अदालत ने कहा, “शिक्षा को कक्षाओं तक ही सीमित नहीं रखा जाना चाहिए और खेल-कूद सहित पाठ्येतर गतिविधियां भी शिक्षा पाठ्यक्रम का हिस्सा होनी चाहिए। नए वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार, इससे बच्चों का शारीरिक कौशल बढ़ता है। यदि बच्चों को स्कूल के खेल के मैदान में खेल और अन्य गतिविधियों में शामिल होने की अनुमति दी जाए तो यह बच्चों में सामाजिक कौशल, संज्ञानात्मक कौशल और भावनात्मक कौशल में भी सुधार करेगा। इससे निश्चित रूप से बच्चों का तनाव और चिंता कम होगी।”

इसलिए, अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वे केईआर के चैप्टर IV, नियम 1 और 3(2) के अनुरूप दिशानिर्देश तैयार करे और प्रत्येक श्रेणी के स्कूल में आवश्यक खेल के मैदान की सीमा और अपेक्षित सुविधाओं को निर्धारित करने का निर्देश दे। यह काम चार महीने के भीतर हो जाना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा, अगर कोई स्कूल इन मानदंडों का उल्लंघन करता पाया जाता है, तो स्कूल को बंद करने सहित कड़ी कार्रवाई का आदेश दिया जाना चाहिए।

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