नीतीश कुमार के जाने के बाद RJD के विधायकों को फायदा, BJP-JDU के MLA को मिल सकती है निराशा
विधानसभा से लोकसभा की यात्रा इसबार कठिन है। हरेक लोकसभा चुनाव में कुछ विधायक उम्मीदवार बनते हैं। उनमें से कुछ लोकसभा पहुंच भी जाते हैं, लेकिन इस बार कोई दल अपने विधायक को लोकसभा उम्मीदवार बनाने के पक्ष में नहीं है। क्योंकि सत्तारूढ़ राजग के पास सत्ता बचा कर रखने लायक ही विधायक हैं। उधर महागठबंधन अब भी इस उम्मीद में है कि अवसर मिला तो एक बार और सरकार गिराने का प्रयास करेंगे।
महागठबंधन के विधायकों की हो सकती है चांदी
हां, चुनाव लड़ने के इच्छुक विधायकों के लिए दूसरे दल का दरवाजा जरूर खुला है। सबसे अधिक संभावना महागठबंधन में है। राजग में जदयू के निकलने के बाद महागठबंधन में लोकसभा उम्मीदवारों के लिए अच्छी रिक्ति हो गई है। विश्वासमत के विरोध में मतदान करने के लिए राजग के विधायकों को लोकसभा चुनाव में टिकट देने के प्रस्ताव की चर्चा खूब हुई थी। चर्चा भले ही समाप्त हो गई हो, लेकिन प्रस्ताव यथावत है।
इसके तहत राजग विधायकों के लिए लोकसभा की 10 सीटों का प्रबंध था। भाजपा विधायकों के लिए वाल्मीकिनगर, मोतिहारी, मधुबनी और जदयू विधायकों के लिए नवादा, खगड़िया, बांका, भागलपुर, सीतामढ़ी, पूर्णिया आदि लोकसभा सीटों का प्रस्ताव दिया गया था। ये सब ऐसी सीटें हैं जिनपर 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा-जदयू-लोजपा की जीत हुई थी।
एनडीए में विधायकों को सांसद का टिकट मिलना मुश्किल
ऐसी सुविधा राजग के घटक दलों के पास नहीं है। जदयू के राजग से जुड़ने के बाद लोकसभा की 40 में से 39 के वर्तमान सांसद एकसाथ आ गए हैं। बदलाव यह आया कि 2019 के राजग की तुलना में इस समय दो नए दल हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक जनता दल राजग से जुड़ गए हैं। इन दोनों के लिए सीट निकालना ही नेतृत्व के लिए बड़ी चुनौती है।
वर्तमान सांसदों का टिकट कटे, तभी नए उम्मीदवारों के लिए संभावना बन सकती है। दूसरा पहलू यह है कि हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के चार विधायकों पर सरकार की निर्भरता भी राजग को अपने किसी विधायक को लोकसभा में भेजने से रोक रही है।