महाराष्ट्र: समाना के जरिये उप मुख्यमंत्री अजित पवार और भाजपा पर बोला हमला, जानिए क्या कहा…

समाना के संपादकीय में शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) ने बुधवार (11 अक्टूबर) को महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार और बीजेपी पर हमला किया। सामना ने संपादकीय में कहा है कि अजित पवार का चुनाव आयोग के फैसले से पहले एनसीपी पर दावा करना मनमाना है, क्योंकि केवल विधायकों और सांसदों को विभाजित करने से कोई पार्टी का मालिक नहीं हो जाता।

संपादकीय में कहा गया है कि अजित पवार ने चुनाव आयोग के समाने दावा किया कि एनसीपी प्रमुख शरद पवार एक तानाशाह हैं और उन्होंने पार्टी को अपने तरीके से चलाया है। इसमें यह भी कहा गया कि यही तर्क शिवसेना के बंटवारे के दौरान भी चुनाव आयोग के सामने दिया गया था।

‘विद्रोही गुट चुनाव हार जाता है, तो आयोग का निर्णय संदिग्ध होगा’

संपादकीय में आगे तर्क है कि अगर दोनों दलों का विद्रोही गुट (सीएम एकनाथ शिंदे और अजित पवार) चुनाव हार जाता है, तो उन्हें पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह देने का निर्णय संदिग्ध होगा। बालासाहेब ठाकरे द्वारा बनाई गई शिवसेना और शरद पवार द्वारा स्थापित एनसीपी दोनों ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और अजित पवार जैसे लोगों को महत्वपूर्ण पद दिए हैं।

‘शरद पवार की वजह से ईडी ने अजित पवार को आजतक नहीं छुआ’

सामना के संपादकीय में दावा किया गया है कि अजित पवार शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी से चार से पांच बार उपमुख्यमंत्री बने। इसमें कहा गया है कि शरद पवार के नेतृत्व के कारण ईडी ने अजित पवार को आजतक नहीं छुआ। संपादकीय में कहा गया है कि अगर अजित पवार को अपनी क्षमता और ताकत पर भरोसा होता तो उन्होंने अपनी पार्टी बनाई होती और जनता की राय मांगी होती, लेकिन उन्होंने बीजेपी को अपना नया ‘मालिक’ बनाने का फैसला किया।

भुजबल, मुश्रीफ और पटेल पर साधा निशाना

सामना ने आगे लिखा है कि शरद पवार की पार्टी एनसीपी ने छगन भुजबल को मंत्री बनाया, जो तब जेल से रिहा हुए थे, पार्टी ने हसन मुश्रीफ को भी मौका दिया, जो जेल जाने की कगार पर थे। इन लोगों के पास उस समय शरद पवार के कामकाज की ‘तानाशाही’ के बारे में कहने के लिए कुछ नहीं था। शरद पवार ने प्रफुल्ल पटेल को नेतृत्व के भरपूर मौके भी दिए। भुजबल, मुश्रीफ और पटेल ने अपने गुट के नेता अजित पवार के नक्शेकदम पर चलते हुए बीजेपी से हाथ मिला लिया।

संपादकीय में यह भी दावा किया गया कि राष्ट्रीय राजनीति में प्रफुल्ल पटेल की प्रमुखता केवल शरद पवार के कारण है। इसमें यह भी कहा गया है कि क्योंकि प्रफुल्ल पटेल का दाऊद इब्राहिम के गुर्गे इकबाल मिर्ची के साथ लेनदेन संदिग्ध निकला, इसलिए पटेल ने अपने खिलाफ कार्रवाई से बचने के लिए शरद पवार को धोखा दिया है।

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