72 हूरें को लेकर डायरेक्टर संजय सिंह का बड़ा खुलासा, बोले- फिल्म की वजह से कई प्रोजेक्ट्स भी हाथों से निकले…

सिनेमा रिलीज के पहले ही 72 हूरें निरंतर ख़बरों चर्चा में हैं। फिल्म के लिए नेशनल अवॉर्ड जीत चुके निर्देशक संजय पूरन सिंह बताते हैं कि फिल्म की रिलीज को लेकर उन्हें कई प्रकार के पापड़ बेलने पड़े हैं। इतना ही नहीं इस फिल्म के कारण उनके बाकी प्रोजेक्ट्स भी हाथों से छूट गए हैं। फिल्म तो 2 वर्ष पूर्व नेशनल अवॉर्ड जीत चुकी है। मगर अब जाकर रिलीज करने के कारण पर संजय बताते हैं, देखिए, हर चीज का एक समय होता है। बहुत सारी ऐसी चीजें भी होती हैं, जो आपके नियंत्रण में नहीं होती हैं। उसमें से एक फिल्म का रिलीज होना है। देखो, फिल्म बना लेना ही अपने आपमें एक बहुत बड़ा चैलेंज होता है। उसके बाद रिलीज करवाने का पैटर्न होता है। 

आगे उन्होंने कहा- चूंकि यह एक सीरियस सब्जेक्ट पर फिल्म है, तो अमूमन यही होता है कि आपको इसके लिए अधिक संघर्ष करना पड़ता है। मैं कई स्टूडियोज गया मगर किसी ने भी इसके सब्जेक्ट की वजह से साथ नहीं दिया था। इसी बीच कोविड आ गया, जिसने भी बहुत समय ले लिया था। थिएटर्स भी सीमित मात्रा में खुल रही थी। बहुत से कारण थे, जिसकी वजह से फिल्म लेट होती चली गई थी। वैसी भी मैं एक सिर्फ डायरेक्टर हूं, रिलीज वगैरह की चीजें प्रोड्यूसर की जिम्मेदारी होती है। यह सब मेरे हाथ में नहीं होता है। वही इस कहानी को लेकर बड़े प्रोडक्शन हाउसेस का क्या बर्ताव था? इसके जवाब में संजय बताते हैं, उन्होंने मेरी फिल्म की कहानी सुनकर ही पैसे लगाने से मना कर दिया था।

इनफैक्ट किसी एक ने तो कहा कि ये फिल्म रिलीज ही मत करो। पैसे बर्बाद हो जाएंगे। इतना ही नहीं हुआ, मैं किसी बड़ी फिल्म में बतौर लेखक जुड़ा था। वहां भी मेरी इस फिल्म की वजह से उन्हें थोड़ा इश्यू है, वो कहते हैं कि आप ऐसी फिल्म बना चुके हैं, हम नहीं चाहते हैं कि आपकी इस विवाद के कारण हमारी फिल्म दिक्कत आए। मुझे उस फिल्म से निकाल दिया गया। कई बार सच बोलने पर आपको उसकी कीमत तो अदा करनी ही पड़ती है। कई सारी प्रोजेक्ट्स से हाथ गंवाना पड़ा था। 

सोशल मीडिया पर एक ओर फिल्म के ट्रेलर को पसंद किया जा रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ इसे प्रोपेगेंडा भी करार दिया जा रहा है। इसके डिफेंस पर संजय बोलते हैं, कुछ लोग यदि ऐसा कह रहे हैं कि मैं एक खास एजेंडे के तहत फिल्म रिलीज कर रहा हूं, तो वहीं कुछ लोगों का कहना है कि यह बहुत ही वाजिब सब्जेक्ट है। विचार तो दोनों ओर से होनी ही है। सबसे बड़ी बात है, चर्चा होना। चूंकि यह गंभीर सब्जेक्ट है, तो शायद चर्चा के पश्चात् कुछ अवेयरनेस आए। यह कोई नहीं बात है कि बहुत से लोग ISISमें भर्ती हो रहे हैं। ये लोग ऐसे थोड़े हैं न कि आसमान से आए हैं। ये हमारे आसपास के लोग ही हैं। यह तो बढ़ियां बात है कि बातचीत हो रही है, मामले को कारपेट के नीचे नहीं डाल रहे हैं। 

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