मानवता शर्मसार: एंबुलेंस के लिए पैसे न होने पर बच्चे के शव को लेकर शख्स ने की 200km की यात्रा

पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में मानवता को शर्मसार कर देने वाला मामला सामने आया है। एंबुलेंस के लिए पैसे न होने पर शख्स को अपने छह माह के बच्चे के शव को बैग में पैक करके 200 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ी। घटना बहुत हृदय विदारक है। बताया जा रहा है कि शख्स विभिन्न बसों की यात्रा करके अपने घर पहुंचा। शख्स का दावा है कि उसे सरकारी एंबुलेंस नहीं मिली। प्राइवेट एंबुलेंस के लिए 8 हजार रुपए डिमांड की गई थी, लेकिन उसके पास इतने पैसे नहीं थे। इसलिए उसे ऐसा कदम उठाना पड़ा। उधर, इस मामले में अस्पताल के अधिकारियों का कहना है कि शख्स ने एंबुलेंस की मांग ही नहीं की। पूरे घटनाक्रम पर बीजेपी और टीएमसी आमने-सामने हो गई है।

मामला पश्चिम बंगाल के दिनाजपुर जिले का बताया जा रहा है। आरोप है कि कालियागंज के डांगापात्रा गांव निवासी आशिम देब शर्मा को कुछ दिन पहले अपने जुड़वा बेटों को कालियागंज राजकीय सामान्य अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। अस्पताल ने छह महीने के जुड़वा बच्चों को रायगंज मेडिकल कॉलेज अस्पताल में रेफर कर दिया, जहां से उन्हें दार्जिलिंग जिले के सिलीगुड़ी में उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (NBMCH) में फिर से रेफर कर दिया गया। एनबीएसीएच उत्तर बंगाल का सबसे बड़ा अस्पताल है।

एक बच्चा घर लौटा पर दूसरे की मौत

जानकारी के अनुसार, अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद गुरुवार को शर्मा की पत्नी एक बच्चे के साथ घर लौटी। हालांकि, शर्मा को वापस रहना पड़ा क्योंकि दूसरा बच्चा अभी भी भर्ती था। शनिवार शाम उस बच्चे की मौत हो गई। मीडिया से बातचीत में शर्मा ने कहा, “मुझे शव-वाहन नहीं मिला और निजी एम्बुलेंस ऑपरेटरों ने 8000 रुपये की मांग की। मैं एक गरीब प्रवासी श्रमिक हूं और मैं राशि का भुगतान करने में सक्षम नहीं था। फिर मैंने अपने बेटे के शव को अपने बैग में रखा और सिलीगुड़ी से रायगंज और फिर कालियागंज बस से यात्रा की।

सिलीगुड़ी से कालियागंज की दूरी करीब 200 किलोमीटर है। शर्मा ने आगे कहा, “मैंने बच्चों के इलाज पर 16000 रुपये पहले ही खर्च कर दिए थे, और मेरे पास बहुत कम पैसा बचा है। कालियागंज से एक स्थानीय भाजपा नेता ने शव को मेरे गांव ले जाने के लिए एक एम्बुलेंस किराए पर ली।”

क्या कहता है अस्पताल प्रशासन

उधर, अस्पताल के अधिकारियों ने हालांकि कहा कि शर्मा ने एंबुलेंस के लिए उनसे संपर्क नहीं किया। एनबीएमसीएच के अधीक्षक डॉ संजय मल्लिक ने कहा, “एनबीएमसीएच के पास अपना शव वाहन नहीं है, लेकिन अगर आर्थिक रूप से कमजोर परिवार हमसे अनुरोध करते हैं, तो हम रोगी कल्याण समिति के माध्यम से इसकी व्यवस्था करते हैं. इस मामले में, हालांकि, परिवार के सदस्यों ने हमसे संपर्क नहीं किया।”

शर्मा ने दावा किया कि उन्होंने बाल चिकित्सा वार्ड के नर्सिंग स्टाफ से शव को एक रात के लिए रखने का अनुरोध किया था ताकि वह अगली सुबह घर लौट सकें। डॉ. संजय मल्लिक ने कहा, “अगर उन्होंने हमसे संपर्क किया होता, तो शव-वाहन की व्यवस्था करने के प्रयास किए गए होते।”

पहले भी आए ऐसे मामले

इससे पहले जनवरी में, एक व्यक्ति अपने बेटे के साथ कथित तौर पर एक वीडियो में देखा गया था, जो जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में अपनी 72 वर्षीय पत्नी के शव को अपने कंधे पर ले जाते हुए वायरल हुआ था। उसने बाद में बताया था कि एंबुलेंस संचालकों द्वारा मांगे गए किराए का भुगतान करने में वह असमर्थ था।

बीजेपी और टीएमसी में जुबानी जंग 

इस प्रकरण पर बीजेपी ने टीएमसी सरकार को आड़े हाथों लिया हैं। नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने कहा, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राज्य की स्वास्थ्य मंत्री के रूप में दोहरी भूमिका निभा रही हैं। “इस बेचारे को अपने बच्चे की लाश को झोले में ढोना पड़ रहा है। उसे कोई एंबुलेंस नहीं मिली। पश्चिम बंगाल में स्वास्थ्य सुविधा का यह हाल है। यह मामला उत्तर दिनाजपुर जिले का है। दुख की बात है, लेकिन यह पश्चिम बंगाल के सभी जिलों की वास्तविकता है।’ 

जवाब में टीएमसी ने भी काउंटर अटैक किया। टीएमसी ने कहा, “घटना वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है। प्रशासन इस पर जरूर गौर करेगा कि ऐसा क्यों और कैसे हुआ। ऐसी घटना का कोई समर्थन नहीं करेगा। विपक्ष के नेता शवों पर गिद्ध-राजनीति करने की अपनी आदत से बाज नहीं आ रहे हैं। वह शायद भूल गए होंगे कि अभी कुछ दिन पहले उनके काफिले की चपेट में आने से एक शख्स की मौत हो गई थी। उन्होंने काफिले तक को नहीं रोका। कुछ महीने पहले पुलिस की अनुमति के बिना आयोजित एक कार्यक्रम में कंबल बांटने गए भगदड़ में तीन लोगों की मौत हो गई थी। इसलिए ऐसे बयान उन्हें शोभा नहीं देते। वे (भाजपा) सिर्फ मृतकों पर राजनीति कर रहे हैं।’

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