भीषण सर्दी के बीच लोग सड़क पर प्रदर्शन कर अपना आशियाना बचाने की लगाई गुहार..

उत्तराखंड के नैनीताल जिले के हल्द्वानी शहर में रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने पर बवाल मचा हुआ है। भीषण सर्दी के बीच लोग सड़क पर प्रदर्शन कर अपना आशियाना बचाने की गुहार लगा रह हैं। पूरे मामले पर सुप्रीम कोर्ट में आज गुरुवार को सुनवाई होनी है।वनभूलपुरा में रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने पर नैनीताल हाईकोर्ट अपना फैसला पहले ही सुना चुकी है। 

हल्द्वानी में 4365 परिवारों को 29 एकड़ रेलवे भूमि पर बने अपने घर खाली करने होंगे। रेलवे भूमि पर अतिक्रमण के मामले में हाईकोर्ट ने पिछले साल दिसंबर को अपना निर्णय सुनाया। न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने रेलवे से अतिक्रमणकारियों को एक हफ्ते का नोटिस देकर अतिक्रमण ध्वस्त करने के आदेश दिए थे।

 खंडपीठ ने इस मामले में एक नवंबर को सुनवाई पूरी होने पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। 9 नवम्बर 2016 को हाईकोर्ट में हल्द्वानी के गौलापार निवासी रविशंकर जोशी ने जनहित याचिका दायर की थी। जिसमें कहा था कि रेलवे भूमि पर अवैध कब्जा है, जिसे हटाया जाना चाहिए।

कोर्ट ने सुनवाई करते हुए 10 सप्ताह के भीतर रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि जितने भी अतिक्रमणकारी हैं उन्हें रेलवे पीपी एक्ट के तहत नोटिस देकर जन सुनवाइयां करे। सुनवाई के दौरान पूर्व में अतिक्रमणकारियों की तरफ से कहा गया कि रेलवे ने उनका पक्ष नहीं सुना।

इसलिए उन्हें भी सुनवाई का मौका दिया जाए। उधर, रेलवे ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि सभी अतिक्रमणकारियों को पीपी एक्ट के तहत नोटिस जारी कर सुना गया है। वहीं राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि यह भूमि राज्य सरकार की नहीं रेलवे की है। पूर्व में कोर्ट ने सभी अतिक्रमणकारियों से अपनी-अपनी आपत्ति पेश करने को कहा था।

किसी के पास वैध कागजात नहीं
रेलवे की तरफ से कहा गया कि हल्द्वानी में उनकी 29 एकड़ भूमि पर अतिक्रमण किया गया है। उस पर करीब 4365 अतिक्रमणकारी मौजूद हैं। हाईकोर्ट के आदेश पर लोगों को पीपी एक्ट में नोटिस देकर रेलवे ने सुनवाई पूरी कर ली है। किसी भी व्यक्ति के पास जमीन के वैध कागजात नहीं पाए गए।

चार हजार से ज्यादा घरों के भविष्य पर सुप्रीम सुनवाई आज
सुप्रीम कोर्ट हल्द्वानी में रेलवे की 29 एकड़ जमीन पर अतिक्रमण हटाने के उत्तराखंड उच्च न्यायालय के निर्देश को चुनौती देने वाली याचिका पर गुरुवार आज 05 जनवरी को सुनवाई करेगा। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, एस.ए. नजीर और पीएस नरसिम्हा ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण की ओर से मामले का जिक्र किए जाने के बाद इसे सुनवाई के लिए स्वीकार किया।

अधिवक्ता भूषण ने कहा कि हल्द्वानी में चार हजार से अधिक मकानों को ढहाए जाने का मामला उस मामले के समान है जिस पर गुरुवार को सुनवाई होनी है। इससे पहले हल्द्वानी के कुछ निवासियों ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। गौरतलब है कि उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर को बनभूलपुरा में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण करके बनाए गए ढांचों को गिराने के आदेश दिए थे ।

पांच वार्डों का भूगोल, 20 हजार के बदलेंगे ठिकाने
रेलवे भूमि मामले में हाईकोर्ट ने मंगलवार को अपना फैसला सुना दिया। इससे 11 साल पुराने नगर निगम हल्द्वानी-काठगोदाम का स्वरूप बदलना तय है। अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई होने पर निगम क्षेत्र के पांच वार्डों का भूगोल बदलेगा। जबकि 20 हजार से ज्यादा आबादी प्रभावित होने की बात कही जा रही है।

इन लोगों को नया अपना नया ठिकाना तलाशना पड़ेगा। हल्द्वानी में रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने का मामला कई सालों से चर्चा में है। 2016 में आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा कोर्ट में दायर की गई याचिका के बाद से लगातार मामला चल रहा था। वहीं रेलवे और प्रशासन की ओर से अतिक्रमण की जद में आ रहे क्षेत्रों का सर्वे कर रिपोर्ट तैयार की थी। सर्वे की कार्रवाई के दौरान अधिकारियों को लोगों की नाराजगी का सामना भी करना पड़ा था।

जानकारी के अनुसार वार्ड 24, 25, 26, 32 और 33 अतिक्रमण की जद में आ रहे हैं। इसमें प्रभावित वार्डों के कुछ हिस्सों का अस्तित्व पूरी तरह खत्म होना की बात कही जा रही है। उधर, हाईकोर्ट के फैसले के बाद प्रभावित क्षेत्रों के लोग सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं। उनका कहना है कि कानून की लड़ाई कानूनी तरह से ही लड़ी जाएगी।

582 बस्तियों पर भी मंडरा रहा संकट
हल्द्वानी वनभूलपुरा बस्ती पर मंडरा रहे संकट की तरह प्रदेश की 582 अन्य बस्तियों पर कभी भी खतरा आ सकता है। 2016 में नियमावली बनाए जाने के बावजूद प्रदेश में एक भी बस्ती का नियमितीकरण नहीं हो पाया। फिलहाल इन बस्तियों को 2024 तक जरूर राहत मिली हुई है।

2016 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले तत्कालीन हरीश रावत सरकार ने मलिन बस्तियों को नियमित करने के लिए नियमावली जारी करते हुए दिशा निर्देश तैयार किए थे। इसके लिए उस वक्त प्रदेश में मौजूद 63 निकायों में विस्तृत सर्वे कर बस्तियों की संख्या, जमीन का प्रकार, आबादी का पता लगाया गया। उस सर्वे में प्रदेश में 582 बस्तियों की जानकारी सामने आई।

लेकिन ज्यादातर मलिन बस्तियां नदी- नाले और वनभूमि पर बसी होने के कारण इनका नियमितीकरण नहीं हो पाया। 2018 में अवैध निर्माण पर हाईकोर्ट की सख्ती के बाद इन बस्तियों पर संकट गहराने लगा तो तत्कालीन भाजपा सरकार ने कानून बनाकर इन बस्तियों को तीन साल के लिए राहत प्रदान करते हुए, तात्कालिक समाधान निकाला।

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