गुजरात में मुस्लिमों को टिकट देने के मामले में भाजपा और कांग्रेस दोनों का ही रिकॉर्ड खराब है

गुजरात में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। हिंदुत्व की राजनीति का गढ़ माने जाने वाले इस राज्य में तुष्टिकरण की राजनीति कभी नहीं चलती इसलिए चुनावों में मुस्लिमों को लुभाने के प्रयास राजनीतिक दलों की ओर से ज्यादा नहीं किये जाते। लेकिन इस बार हालात कुछ अलग नजर आ रहे हैं क्योंकि हैदराबाद वाले असद्दुदीन ओवैसी भी अपनी पार्टी को यहां चुनाव लड़ा रहे हैं। उनकी सभाओं में जिस तरह भीड़ उमड़ रही है उसको देखते हुए अन्य दल चौकन्ना हैं खासकर आम आदमी पार्टी। माना जा रहा है कि आम आदमी पार्टी इस तैयारी में है कि भाजपा और कांग्रेस से ज्यादा मुस्लिमों को टिकट दिया जाये। हालांकि अभी पार्टी ने कोई निर्णय नहीं लिया है लेकिन इस बात पर मंथन चल रहा है। जहां तक भाजपा और कांग्रेस की ओर से मुस्लिम उम्मीदवार उतारे जाने की बात है तो भाजपा इस बार भी शायद ही किसी मुस्लिम को टिकट दे जबकि कांग्रेस की ओर से हाल ही में अल्पसंख्यक सम्मेलनों के आयोजनों के जरिये इस बात के संकेत दिये गये हैं कि मुस्लिम उम्मीदवार अच्छी खासी संख्या में उतारे जायेंगे।

हालांकि गुजरात के चुनावी इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो ज्ञात होता है कि मुस्लिमों को टिकट देने के मामले में सबसे बड़ी कंजूस भाजपा रही है जबकि कांग्रेस भी बहुत उदार नहीं रही है। आप जानकर चौंक जायेंगे कि भारतीय जनता पार्टी ने 1980 में अपनी स्थापना के बाद से गुजरात में हुए सभी नौ विधानसभा चुनावों में सिर्फ एक मर्तबा एक मुसलमान को उम्मीदवार बनाया है। पिछले 27 सालों से राज्य की सत्ता पर काबिज भाजपा ने आखिरी बार 24 साल पहले भरूच जिले की वागरा विधानसभा सीट पर एक मुसलमान उम्मीदवार उतारा था, जिसे हार का सामना करना पड़ा था।

भाजपा-कांग्रेस दोनों ही कंजूस!

देखा जाये तो मुसलमानों को उम्मीदवार बनाने के मामले में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस का रिकार्ड बेहतर रहा है लेकिन आबादी के अनुरूप उन्हें टिकट देने में उसने भी कंजूसी ही बरती है। वर्ष 1980 से 2017 तक हुए गुजरात विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने कुल 70 मुसलमान नेताओं को उम्मीदवार बनाया और इनमें से 42 ने जीत दर्ज की। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने छह मुसलमानों को टिकट दिया था, इनमें से चार ने जीत दर्ज की थी। वर्ष 2012 के चुनाव में उसने पांच मुसलमानों को टिकट दिया तो दो ने जीत हासिल की। साल 2007 के चुनाव में कांग्रेस ने छह उम्मीदवार उतारे थे, इनमें से तीन को जीत नसीब हुई। इसी प्रकार साल 2002 में पांच में से तीन, 1998 में आठ में से पांच, 1995 में एक में एक, 1990 में 11 में दो, 1985 में 11 में से आठ और 1980 में 17 उम्मीदवारों में से 12 ने जीत दर्ज की।

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गुजरात की मुस्लिम आबादी

साल 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो ज्ञात होता है कि गुजरात में मुसलमान सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है, जिनकी आबादी में 10 फीसदी के करीब हिस्सेदारी है और राज्य विधानसभा की कुल 182 सीटों में से करीब 30 सीटों पर उनकी आबादी 15 प्रतिशत से अधिक है।

क्या है गुजरात का राजनीतिक इतिहास?

गुजरात के राजनीतिक इतिहास पर गौर करें तो ज्ञात होता है कि नब्बे के दशक से ही राज्य की राजनीति में भाजपा का दबदबा रहा है। वर्ष 1990 के चुनाव में विधानसभा त्रिशंकु हुई और भाजपा व जनता दल गठबंधन की सरकार बनी। इसके बाद 1995 के चुनावों से लेकर 2017 तक सभी विधानसभा चुनावों में भाजपा ने जीत दर्ज की। प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेन्द्र मोदी 2001 से 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। भाजपा ने 1998 के विधानसभा चुनाव में वागरा विधानसभा क्षेत्र से अब्दुल काजी कुरैशी को टिकट दिया था। इस चुनाव में उन्हें कांग्रेस के उम्मीदवार इकबाल इब्राहिम ने हराया था। इकबाल इब्राहिम को 45,490 मत मिले थे जबकि अब्दुल काजी कुरैशी को 19,051 मतों से संतोष करना पड़ा था। इसके बाद भाजपा ने आज तक किसी भी मुसलामन को उम्मीदवार नहीं बनाया।

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भाजपा का पक्ष

भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी से जब हाल ही में इस विषय पर पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि पार्टी ने पिछले कई गुजरात चुनावों में मुसलमानों को टिकट नहीं दिया लेकिन ऐसा नहीं है कि यह उसके संविधान में लिखा है कि वह उन्हें टिकट ही नहीं देगी। उनका कहना है कि भाजपा धर्म और जाति के आधार पर उम्मीदवार तय नहीं करती बल्कि उम्मीदवारों की स्थानीय लोकप्रियता और उनके जीतने की क्षमता के आधार पर टिकट तय करती है। जमाल सिद्दीकी कहते हैं कि भाजपा ‘‘अल्पसंख्यक मित्र’’ कार्यक्रम के जरिए बूथ और जिला स्तर पर मुसलमानों को पार्टी से जोड़ रही है और यह सुनिश्चित कर रही है कि उन्हें केंद्र व राज्य सरकार की सभी योजनाओं का लाभ मिले। हालांकि उन्होंने उम्मीद जताई कि 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा जीत की क्षमता के आधार पर मुसलमानों को भी टिकट देगी।

कांग्रेस का पक्ष

गुजरात का राज्य के तौर पर गठन 1960 में हुआ था उसके बाद से राजनीतिक हालात को देखें तो 1962 से लेकर 1985 तक के चुनावों में कांग्रेस का दबदबा था। हालांकि इस दौर में भी मुसलमानों को टिकट देने में राजनीतिक दलों ने कंजूसी बरती। इस दौरान विधानसभा पहुंचने वाले मुसलमान उम्मीदवारों की संख्या तीन दर्जन के करीब रही। गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अल्पसंख्यक विभाग के अध्यक्ष वजीरखान पठान का इस बारे में कहना है कि कांग्रेस की बदौलत ही मुसलमान गुजरात विधानसभा की दहलीज लांघता रहा है। उनका कहना है कि इस बार के चुनाव में हम उन्हीं सीटों पर मुसलमान उम्मीदवार उतारेंगे, जहां जीत की संभावना प्रबल होगी। उन्होंने कहा है कि शेष सीटों पर हमारी कोशिश भाजपा के उम्मीदवार को पराजित करने की होगी। हम पार्टी पर टिकटों के लिए अनावश्यक दबाब नहीं बनाएंगे। पठान का कहना है कि जब से गुजरात की सत्ता में भाजपा आई है, मुसलमानों का चुनाव जीतना दूभर हो गया है। उनका आरोप है कि भाजपा सांप्रदायिक राजनीति करती है और यह इस बात से भी साबित होता है कि इतने वर्षों में उसने सिर्फ एक ही मुसलमान को टिकट देने योग्य समझा।

बहरहाल, यहां यह भी उल्लेखनीय है कि गुजरात के विधानसभा चुनावों के इतिहास में सिर्फ दो ही बार त्रिशंकु विधानसभा बनी है। पहली बार 1975 के चुनाव में बाबू भाई पटेल के नेतृत्व में जनता मोर्चा और दूसरी बार 1990 के चुनाव में चिमन भाई पटेल के नेतृत्व में किसान मजदूर लोक पक्ष (केएमएलपी), जनता दल और भाजपा गठबंधन की सरकार बनी थी। वर्तमान 182 सदस्यीय गुजरात विधानसभा का कार्यकाल 18 फरवरी 2023 को समाप्त हो रहा है। ऐसे में निर्वाचन आयोग कभी भी विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा कर सकता है। देखना होगा कि इस बार भाजपा और कांग्रेस कितने मुस्लिमों को टिकट देती हैं।

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