नीतिगत पुनर्विचार और अच्छे डिजाइन की मदद से विलुप्तप्राय वनस्पतियों एवं जानवरों के लिए पनाहगाह बन सकते हैं शहर

Delhi: इंसानों और प्रकृति के बीच बेहतर संबंध बनाना हमारे शहरों में जानवरों को वापस लाने की दिशा में पहला कदम है। एडिलेड हिल्स बारोसा घाटी की हरी घास में छोटे से पक्षी ‘सुपर्ब फेरीरेन’ को इधर-उधर घूमते आसानी से देखा जा सकता है, जो साउथ ऑस्ट्रेलिया सरकार के संरक्षण के प्रयासों का उत्साहजनक परिणाम है, लेकिन इससे कुछ ही दूर स्थित एडिलेड शहर इन पक्षियों के बसने के अनुकूल नहीं है। इसकी सबसे बड़ी वजह है तीव्र शहरीकरण।

शहरी फैलाव को समायोजित करने के लिए विलुप्त होने के गंभीर खतरे का सामना कर रहे पौधों, जानवरों के आवास और यहां तक कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को खतरनाक दर से नष्ट किया जा रहा है। ऑस्ट्रेलिया में शहरीकरण 2002 के बाद से लगातार बढ़ा है। नतीजतन, कोआला जैसी ऑस्ट्रेलियाई प्रजातियां हमारी आंखों के सामने गायब हो रही हैं, लेकिन इस स्थिति को बदला जा सकता है। सावधानीपूर्वक योजना, डिजाइन और वास्तुकला के माध्यम से जैव विविधता के संरक्षण में मददगार शहरी वातावरण बनाकर हमारे शहरों को प्रकृति से जोड़ा जा सकता है। कुछ नीतिगत पुनर्विचार और अच्छे डिजाइन की मदद से शहर प्रजातियों के पलने-बढ़ने के लिए पनाहगाह बन सकते है।

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इस दिशा में पहला महत्वपूर्ण कदम शहरी नियोजन के दौरान प्रकृति को लेकर सोच को फिर से परिभाषित करना है। प्रकृति को एक बाधा या ‘समस्या’ मानने के बजाय, इसे अहम पूंजी और अवसर माना जा सकता है। विकास के प्रभावों को कम करना और मानव एवं प्रकृति के बीच बेहतर संबंध बनाना जैव विविधता के प्रति संवेदनशील शहरी डिजाइन के लिए पहला कदम है। शहर में बसाई जा सकने वाली प्रजातियों को इस आधार पर चुना जा सकता है कि वे कितनी महत्वपूर्ण हैं।

अगला कदम यह विचार करना है कि इन प्रजातियों को जीवित रहने के लिए भोजन, आश्रय और पानी कैसे उपलब्ध होगा तथा उन्हें खतरों और शिकारियों से कैसे बचाया जा सकता है। शहरों को प्रकृति से जोड़ने से विलुप्तप्राय प्रजातियों और लोगों को अतिरिक्त लाभ मिलता है। इससे शारीरिक एवं मानसिक कल्याण से जुड़े लाभ मिलते हैं और इससे शहरों को लू, तूफान और बाढ़ आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अधिक लचीला बनाने में भी मदद मिलती है।

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