15 महीनों में करीब 30 किलो व्हेल की उल्टी हुई बरामद; इसकी कीमत जान आप हो जायेंगे हैरान
दिल्लीः उत्तर प्रदेश स्पेशल टास्क फोर्स यानी STF ने 5 सितंबर को लखनऊ में 4 किलो व्हेल की उल्टी बरामद की। इसकी कीमत करीब 10 करोड़ रुपए बताई जा रही है। पिछले 15 महीनों में देश के अलग-अलग जगहों की पुलिस ने करीब 30 किलो व्हेल की उल्टी बरामद की है।
अब आपके जेहन में सवाल होगा कि आखिर व्हेल की उल्टी होती क्या है? यह कैसे बनती है? इसकी कीमत करोड़ों में क्यों है? इस एक्सप्लेनर में हम एम्बरग्रीस यानी व्हेल की उल्टी की पूरी इनसाइड स्टोरी 7 सवालों के जरिए समझते हैं…
सवाल 1: क्या होती है व्हेल की उल्टी?
जवाब: व्हेल की उल्टी या एम्बरग्रीस फ्रेंच शब्द एम्बर और ग्रीस से मिलकर बना है, जिसका मतलब होता है ग्रे एम्बर। इसे व्हेल की उल्टी कहा जाता है। यह कठोर मोम की तरह होती है, जो स्पर्म व्हेल के पाचन तंत्र में मौजूद आंतों में बनती है।
एम्बरग्रीस अक्सर समुद्र में तैरते हुए पाया जाता है। कई बार यह समुद्र तटों पर लहरों के साथ बहकर भी आता है। इसके साथ ही ये मरी हुई व्हेल के पेट में भी पाया जा सकता है। इसे समुद्र का खजाना या फ्लोटिंग गोल्ड भी कहते हैं। यह चीन, जापान, अफ्रीका और अमेरिका के समुद्र तटों और बहामास जैसे ट्रॉपिकल आइलैंड्स पर सबसे ज्यादा मिलता है।
व्हेल की उल्टी जब व्हेल के शरीर से निकलती है, तो इसका रंग आमतौर पर हल्का पीला होता है। ये गाढ़े फैट जैसी होती है। कुछ समय बाद इसका रंग गहरा लाल हो जाता है। कई बार ये काली और सलेटी रंग की भी होती है।
जब एम्बरग्रीस ताजा होता है, तो इससे मल जैसी गंध निकलती है, लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीतता है इससे मीठी और मिट्टी जैसी सुगंध आने लगती है, जो लंबे वक्त तक बरकरार रहती है।
सवाल 2: कैसे बनती है व्हेल की उल्टी?
जवाब: व्हेल की उल्टी बनने के प्रोसेस को प्रकृति की सबसे अजीबोगरीब घटनाओं में से एक माना जाता है। साइंस को पक्के तौर पर अब भी नहीं पता है कि आखिर यह बनती कैसे है।
फ्लोटिंग गोल्ड: अ नैचुरल एंड (अननैचुरल) हिस्ट्री ऑफ एम्बरग्रीस नामक किताब लिखने वाले क्रिस्टोफर केंप का कहना है कि इसे व्हेल की उल्टी कहना सही नहीं है।
केंप का कहना है कि कभी-कभी, मांस का टुकड़ा व्हेल के पेट से होते हुए जब उसकी आंतों में पहुंचता है, तो एक जटिल प्रोसेस के जरिए व्हेल की उल्टी बनती है। जिसे बाद में व्हेल बाहर निकाल देती है। 1783 में जर्मन फिजिशियन फ्रांज श्वेइगर ने इसे ‘कठोर व्हेल का गोबर’ कहा था।
एक थ्योरी ये भी है कि जब व्हेल बहुत ज्यादा मात्रा में समुद्री जीव को खा लेती है, तो मांस के बड़े टुकड़े को पचाने के लिए ही व्हेल की आंतों में एम्बरग्रीस या व्हेल की उल्टी जैसा पदार्थ बनता है। इस थ्योरी के अनुसार, एम्बरग्रीस स्पर्म व्हेल की आंतों की पित्त नली में बनता है।
सबसे पहले जापानियों ने पता लगाया था कि एम्बरग्रीस स्पर्म व्हेल से पैदा होता है। उससे पहले माना जाता था कि ये समुद्र के पास रहने वाली मधुमक्खियों से या रेजिन नामक जीवाश्म पेड़ से बनता है, जिसके तने से एम्बर बनता है।
सवाल 3 : कितनी है एक किलो व्हेल की उल्टी की कीमत?
जवाब: इंटरनेशल मार्केट में व्हेल की उल्टी की कीमत 2 करोड़ रुपए किलो तक है। पिछले साल मुंबई पुलिस ने कहा था कि 1 किलो व्हेल की उल्टी की कीमत 1 करोड़ रुपए है। लखनऊ में बरामद 4.12 किलो व्हेल की उल्टी की कीमत UP STF ने 10 करोड़ रुपए बताई है, यानी करीब 2.30 करोड़ रुपए प्रति किलो। कुल मिलाकर व्हेल की उल्टी की कीमत उसकी शुद्धता और क्वॉलिटी से तय होती है।
सवाल 4 : आखिर इतनी कीमती क्यों है व्हेल की उल्टी?
जवाब:
- एम्बरग्रीस से निकाले गए अल्कोहल का इस्तेमाल परफ्यूम बनाने में किया जाता है, जिससे उसकी खुशबू लंबे समय तक बरकरार रहती है।
- एकदम सफेद व्हेल की उल्टी वाली वैराइटी की डिमांड परफ्यूम इंडस्ट्री में सबसे ज्यादा होती है।
- इसी वजह से दुबई में व्हेल की उल्टी की काफी डिमांड है, जहां परफ्यूम का बड़ा मार्केट है।
- कुछ देशों में इसका इस्तेमाल दवाइयां बनाने में भी होता है।
- माना जाता है कि प्राचीन मिस्र में व्हेल की उल्टी का इस्तेमाल धूप या अगरबत्ती बनाने में भी होता था।
- मिस्र में आज भी सिगरेट में फ्लेवर के लिए व्हेल की उल्टी का इस्तेमाल होता है।
- 16वीं सदी में ब्रिटेन के राजा चार्ल्स द्वितीय व्हेल की उल्टी के साथ अंडे खाने के बहुत शौकीन थे।
- 18वीं सदी में व्हेल की उल्टी का इस्तेमाल टर्किश कॉफी और यूरोप में चॉकलेट का फ्लेवर बढ़ाने में भी होता था।
- ब्लैक प्लेग महामारी के दौर में कुछ यूरोपीय लोगों का मानना था कि व्हेल की उल्टी का टुकड़ा साथ में रखने से वे प्लेग से बच सकते हैं।
- कुछ कल्चर में माना जाता है कि व्हेल की उल्टी यौन उत्तेजक के रूप में भी इस्तेमाल हो सकती है।
- अतीत में कुछ देशों में इसका इस्तेमाल खाने में स्वाद बढ़ाने, शराब और तंबाकू में किया जाता था। अब भी कुछ जगहों पर इसका इस्तेमाल पाइप तंबाकू और नेचुरल सिगरेट तंबाकू में होता है। एम्बरग्रीस ग्रे, भूरे और काले रंग का भी होता है, लेकिन इनकी डिमांड कम है, क्योंकि इनमें एंब्रेन यानी अल्कोहल की मात्रा सबसे कम होती है।