महालक्ष्मी व्रत में प्रतिदिन करें महालक्ष्मी स्तोत्र का पाठ, होगी धन की वर्षा
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से महालक्ष्मी व्रत (Mahalakshmi Vrat) का प्रारंभ हुआ है. यह व्रत 16 दिनों तक चलता है. महालक्ष्मी व्रत भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से प्रारंभ होकर आश्विन कृष्ण अष्टमी तक चलता है. इस साल 04 सितंबर से महालक्ष्मी व्रत का प्रारंभ हुआ है और 18 सितंबर को इसका समापन होगा. इन 16 दिनों में माता लक्ष्मी की विधि विधान से पूजा-अर्चना की जाती है.
श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी कहते हैं कि महालक्ष्मी व्रत के समय में यदि महालक्ष्मी स्तोत्र (Mahalakshmi Stotra) का पाठ प्रतिदिन किया जाएगा तो माता लक्ष्मी प्रसन्न होंगी. माता लक्ष्मी की कृपा से उस व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि की कोई कमी नहीं होगी. उसका घर धन-दौलत से भर जाएगा.
सर्वार्थ सिद्धि योग में प्रतिपदा का श्राद्ध
जब महर्षि दुर्वासा के श्राप से स्वर्ग लोक श्रीहीन हो गया था और देवी देवाताओं के पास से धन, सुख, समृद्धि सबकुछ लेकर लक्ष्मी चली गईं, तब देवताओं ने माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए सागर मंथन किया. समुद्र मंथन के समय जब माता लक्ष्मी प्रकट हुईं तो सभी देवी देवताओं ने महालक्ष्मी स्तोत्र से उनकी वंदना और स्तुति की. इससे माता लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न हुईं, जिसके परिणाम स्वरूप पूरी सृष्टि सुख-वैभव से संपन्न हो गई. इस वजह से महालक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करना बहुत ही लाभकारी माना जाता है. इसके प्रभाव से धन, वैभव, संपत्ति, ज्ञान आदि में बहुत वृद्धि होती है.
महालक्ष्मी स्तोत्र
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
सर्वज्ञे सर्ववरदे देवी सर्वदुष्टभयंकरि।
सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणी।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर:।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।।
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन्यधान्यसमन्वित:।।
त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा।।