सीमा पात्रा की कैद से छूटी सुनीता बोलीं- ‘सामान छूने पर भी मारती थीं मैडम’

दिल्लीः नाम सुनीता, उम्र करीब 29 साल। हालांकि सुनीता को अपनी उम्र याद नहीं है। इसकी वजह है, बेरहमी से लगातार पिटाई। सुनीता BJP से सस्पेंड सीमा पात्रा के घर काम करती थीं। यहां उन्हें बुरी तरह मारा जाता था। इससे दांत टूट गए, पैरों ने काम करना बंद कर दिया, चेहरे और हाथ पर जले के कई निशान बन गए।

रांची के रिम्स में 2 हफ्ते से उनका इलाज चल रहा है। वे पहले से बेहतर हैं, लेकिन कमजोरी बहुत है। पूरी तरह ठीक होने में वक्त लगेगा। हमने सुनीता से उनके वार्ड में ही बात की। उन्होंने बताया कि मैडम (सीमा) छोटी गलतियों पर भी इतना गुस्सा होती थीं कि जो हाथ में आता, उसी से मारतीं। हमने सुनीता से पूछा- ये सब कब से शुरू हुआ? उन्होंने बताया- एक साल से। इससे पहले ज्यादा टॉर्चर नहीं होता था।

सवाल – आप सीमा पात्रा के घर कैसे और कब पहुंचीं?
मेरा घर झारखंड के गुमला जिले में पड़ता है। मैं अपने ननिहाल के जरिए सीमा पात्रा के घर पहुंची। उनके घर में रहकर झाड़ू-पोछा, बर्तन और धीरे-धीरे खाना बनाना शुरू किया। तीन साल पहले तक दिल्ली में वसंत कुंज में उनकी बेटी के यहां रही। फिर रांची आ गई। यहीं से मैडम का बर्ताव बदल गया।

काम के बदले तनख्वाह मिलती थी?
वे मुझसे कहती थीं कि तुम्हारी तनख्वाह बैंक अकाउंट में जमा कर दी है। मैंने कभी पासबुक देखी नहीं। नहीं पता कि अकाउंट में पैसा डालती भी थीं या नहीं। मेरा आधार कार्ड और बैंक की पासबुक सीमा के पास ही थी। मैं उनसे कहती थी कि मुझे कुछ दिन रिश्तेदारों के यहां जाना है, तो नहीं जाने देती थीं। कहती थीं कि मार के फेंक देंगे, मुंह बंद रखो।

कभी घर से भागने की कोशिश नहीं की?
एक साल से तो घर से बाहर निकलना पॉसिबल ही नहीं रहा। घर में जेल की तरह कैद रहती थी। 2 बार भागने की कोशिश भी की, लेकिन उन्हें पता चल गया। इसके बाद मेरी खूब पिटाई की। कई दिन तक अंधेरे कमरे में बंद रखा। ठीक से खाना तक नहीं खाने देती थीं।

किस वजह से मारती थीं?
मैं चल पाती थी, तब तक झाडू़-पोंछा, बर्तन, खाना कर दिया करती थी। दिल्ली में भी पूरा काम करती थी। रांची आने के बाद उन्होंने इतनी ज्यादा पिटाई शुरू कर दी कि मेरी हालत बिगड़ने लगी। कभी कमर पर लात मार देतीं, कभी बर्तन फेंककर मार देती थीं। पिटाई की वजह से मेरे पैरों ने काम करना बंद कर दिया। मेरा पैर टूट गया।

मुझसे पैदल नहीं चला जाता। रेंगकर चल पाती थी। चलने के लिए अलमारी, दीवार, मेज का सहारा लेना पड़ता था। मैं किसी सामान को हाथ लगाती, तो हाथ पर ही जोर से मारती थीं। कहती थीं कि सामान कीमती है, उसे मत छुओ। कई बार सिर्फ इसी बात पर मेरी पिटाई हुई।

किचन का सामान, बेलन, तवा, कढ़ाई, फ्राइंगपैन फेंककर मारती थीं। गर्म तवे से मारती थीं, तो मैं बचने के लिए हाथ आगे कर देती। (हाथ दिखाते हुए) ये इतने सारे काले निशान दिख रहे हैं, ये सभी तवे से जलाने के ही हैं। वे कितना भी मार दें, उनके हाथ थकते नहीं थे।

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