संघर्ष-लगन से शिखर
अमेरिका के मियामी में लेस ब्राउन और उनके जुड़वां भाई को उनकी काम वाली बाई ने गोद ले लिया था। बचपन से ही लेस को डिस्क जॉकी बनने की धुन सवार थी।
आर्थिक तंगी में लेस ट्रांजिस्टर पर डिस्क जॉकियों के कार्यक्रम सुनते थे। लेस ने अपने एक छोटे से कमरे को काल्पनिक रेडियो स्टेशन बना लिया।
बाल बनाने का ब्रश माइक्रोफोन बन जाता था और वह काल्पनिक श्रोताओं के सामने अपनी प्रस्तुति देते थे। उनकी चाह ने उन्हें रेडियो स्टेशन तक पहुंचा दिया।
वह वहां पर डिस्क जॉकियों के लिए कॉफी, लंच आदि पहुंचाने का काम करते रहे। किसी को लेस की डीजे बनने की तड़प का अहसास न था।
एक दिन एक डीजे की तबीयत खराब हो गई। लाइव कार्यक्रम चल रहा था। स्टेशन मास्टर बोले, ‘लेस, जल्दी से कहीं से एक डीजे तलाश कर लाओ।’ एक पल में ही लेस ने जवाब दिया, ‘सर, डीजे का काम तो मैं खुद भी कर सकता हूं।’
उन्होंने पूछा, ‘आर यू श्योर?’ लेस ने कहा, ‘जी सर।’ इसके बाद लेस कंट्रोल पैनल की सामने वाली सीट पर बैठे और माइक्रोफोन का स्विच ऑन करते हुए उन्होंने कुछ ऐसा बोलना शुरू किया जिसे ट्रांजिस्टर सुनने वाले श्रोताओं ने आज तक नहीं सुना था।
आवाज में गजब का उत्साह, चुस्ती-फुर्ती और स्टाइल से श्रोताओं को जोड़ने की तरकीब ने उन्हें पल में सुपरहिट बना दिया।
इसके बाद लेस ब्राउन का करिअर जो शुरू हुआ, तो वह उन्हें राजनीतिक और सार्वजनिक भाषणों, विश्व प्रसिद्ध मोटीवेटर और टेलीविजन के क्षेत्र तक ले गया। नि:संदेह लगन और संघर्ष की बदौलत व्यक्ति शिखर तक पहुंच सकता है।