सभी ज्योतिर्लिंगों में अनोखा है महाकालेश्वर

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से तीसरा है जो मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है। मृत्यु और काल के स्वामी होने के कारण महादेव को महाकाल कहा जाता है। इस मंदिर से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं मिलती हैं। चलिए जानते हैं इस ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा और इस मंदिर से जुड़ी अन्य खास बातें।
हिंदू धर्म में 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का विशेष महत्व माना गया है। आज हम आपको इन 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी महिमा का वर्णन कई पुराणों में मिलता है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की प्रसिद्धि दुनिभर में फैली हुई है। विशेषकर यहां होने वाली भस्म आरती की, जिसका साक्षी बनने के लिए भक्त दूर-दूर से उज्जैन पहुंचते हैं।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कथा शिव पुराण में मिलती है। कथा के अनुसार, उज्जैन, जिसे उस समय में अवंतिका कहा जाता था, के राजा चंद्रसेन भगवान शिव के परम भक्त थे। राजा की तरह ही उनकी प्रजा भी शिव जी की पूजा में लीन रहती थी। एक बार, दूषण नामक एक राक्षस ने उज्जैन नगरी में अपना आतंक फैलाया हुआ था। इससे परेशान होकर राजा ने महादेव आह्वान किया।
राजा की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव धरती फाड़कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने दूषण का वध कर दिया। तब राजा और उनकी प्रजा ने शिव जी से अनुरोध किया कि वह उनकी नगरी में ही वास करें। तब भगवान शिव ने उनकी अर्जी को स्वीकार करते हुए एक ज्योतिर्लिंग का रूप लिया और उज्जैन में विराजमान हो गए।
मंदिर की खासियत
सभी ज्योतिर्लिंगों में से केवल महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग ही ऐसा है, जो दक्षिणमुखी है। अर्थात इसका मुख दक्षिण दिशा की ओर है, जो अपने आप में अनोखा है। महाकालेश्वर मंदिर मुख्य रूप से तीन हिस्सों में बंटा हुए हैं, जिससे सबसे ऊपरी हिस्से में नाग चंद्रेश्वर मंदिर है। बीच वाले हिस्से में ओंकारेश्वर मंदिर है और सबसे नीचे महाकाल ज्योतिर्लिंग के दर्शन होते हैं।
मंदिर की तीसरी मंजिल पर नागचंद्रेश्वर मंदिर की खास बात यह है कि नागचंद्रेश्वर देवता के दर्शन केवल नागपंचमी के दिन ही होते हैं। महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर, मंदिर के पास एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है और रात में विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है।