सेना के फायरिंग रेंज में अवैध कब्जे पर हाईकोर्ट सख्त

लखनऊ में सेना के फायरिंग रेंज में अवैध कब्जे पर हाईकोर्ट सख्त है। कोर्ट ने एलडीए व आवास विकास परिषद को सर्वे करने का आदेश दिया है। कहा कि अदालत इस मामले में अतिक्रमण होने की जिम्मेदारी भी तय करेगी।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने राजधानी लखनऊ में अर्जुनगंज स्थित सेना के फायरिंग रेंज की जमीनों पर बाहरी लोगों द्वारा अवैध रूप से कब्जा करने के मामले का संज्ञान लिया है। कोर्ट ने मामले में एलडीए व आवास विकास परिषद को इलाके में कथित अतिक्रमण का सर्वे करने करने का आदेश दिया है। ताकि, इस अतिक्रमण की जिम्मेदारी तय हो सके।

कोर्ट ने कहा कि मामले में नियुक्त न्यायमित्र अधिवक्ता ने बताया है कि सेना के अधिकारियों द्वारा अतिक्रमण रोकने के बार-बार अनुरोध के बावजूद राज्य सरकार व एलडीए के अधिकारी अपने आंख व कान बंद किए रहे, जिससे कब्जा होता रहा। इसका नतीजा यह हुआ कि अब सेना वहां लॉन्ग रेंज फायरिंग प्रैक्टिस नहीं कर सकती और अब सिर्फ शॉर्ट रेंज फायरिंग प्रैक्टिस ही की जा सकती है। कोर्ट ने मामले को अगली सुनवायी के लिए सितम्बर के पहले सप्ताह में सूचीबद्ध करने का आदेश दिया है।

न्यायमूर्ति राजन रॉय व न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ल की खंडपीठ ने यह आदेश ब्रिगेडियर त्रिवेणी प्रसाद की वर्ष 2011 में दाखिल जनहित याचिका पर दिया है। याचिका में सेना की फायरिंग रेंज की जमीनों पर अवैध कब्जे का मुद्दा उठाया गया है।

कोर्ट ने मामले में एलडीए समेत आवास विकास परिषद को जनहित याचिका में पक्षकार बनाने के भी आदेश दिए हैं। कोर्ट के संज्ञान में यह भी आया कि इस फायरिंग रेंज की अधिसूचना वर्ष 1977 में जारी हुई थी, जो, समय-समय पर बढ़ती रही। अब, सितंबर 2025 में यह समाप्त हो रही है। हालांकि, केंद्र सरकार के वकील ने कोर्ट को बताया कि अधिसूचना का कार्यकाल बढ़ाए जाने का अनुरोध राज्य सरकार से किया जा चुका है।

इस पर कोर्ट ने सरकार को जल्द निर्णय लेकर अवगत कराने का आदेश दिया है। कोर्ट ने यह भी चेताया है कि हम इस मामले में अतिक्रमण होने की जिम्मेदारी भी तय करेंगे। वहीं सेना की ओर से कहा गया कि अर्जुनगंज फायरिंग रेंज की उसे आवश्यकता है और सेना इस समस्या का हल चाहती है।

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