कैलास मानसरोवर पहुंचा भारतीयों का जत्था

तीर्थयात्रियों का एक जत्था लखनऊ से नेपालगंज से होते हुए सिमिकोट, हिल्सा से नेपाल बॉर्डर पार कर चीन के शिजांग (तिब्बत) स्वायत्त क्षेत्र में मपाम युन त्सो (मानसरोवर) झील पर पहुंचा और कैलास मानसरोवर के अद्भुत दर्शन किए। ये यात्रा विजिट्स कैलास www.visitskailash.com द्वारा आयोजित की गई । 20 जून को लखनऊ से रवाना हुआ जत्था कैलास परिक्रमा कर 29 जून को लखनऊ वापस पहुंचा।


शिजांग पहुचने पर शिवभक्तों का ज़ोरदार स्वागत किया गया ।


4,588 मीटर की ऊँचाई पर स्थित दुनिया की सबसे ऊँची मीठे पानी की मानसरोवर झील के शुद्ध नीले पानी में सभी ने स्नान कर अपनी परिक्रमा शुरू की।


दिल्ली से आए सोविनियर पब्लिशिंग के मालिक, शिवभक्त भरत शर्मा ने कहा, “मानसरोवर में स्नान करके लगा कि आत्मा तक स्वच्छ हो गई”
मानसरोवर झील के चारों ओर की करीब 100 किलोमीटर परिक्रमा बस से पूरी करने वाले 42 तीर्थयात्रियों में से एक विक्रम पराशर ने कहा कि उन्हें थकान के बजाय आशीर्वाद और ऊर्जा महसूस हुई।


मानसरोवर झील के पानी के महत्व के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “हमारे सभी धर्मग्रंथों में कहा गया है कि देवता हर दिन यहाँ स्नान करने आते हैं। इसलिए जब हम पानी पीते हैं, तो हमें लगता है कि हमारे पाप धुल गए हैं और हमें मोक्ष की प्राप्ति हुई है।”


जैसे ही तीर्थयात्री मानसरोवर झील पहुंचे, उन्होंने इसके पवित्र जल से आचमन किया और पूजा-अर्चना की. इस झील का शांत, निर्मल जल और सामने दिखाई देने वाला कैलास पर्वत हर किसी को भाव-विभोर कर रहा था.


पांच साल के लंबे इंतज़ार के बाद, भारतीय तीर्थयात्रियों का ये जत्था कैलाश मानसरोवर की पवित्र भूमि पर पहुंचा था. यह वह स्थान है, जहां स्वयं भगवान शिव और माता पार्वती का निवास माना जाता है, और जहां मानसरोवर झील का पवित्र जल श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. जम्मू से आए एक श्रद्धालु डॉ. एल. डी. भगत ने कहा, “यहां खड़े होकर लगता है कि हम ब्रह्मांड के केंद्र में हैं, जहां कैलाशपति शिव का वास है. इसके आगे हम बोल भी नहीं सकते, बस उनकी कृपा को महसूस करते हैं.”

मुंबई से आए शिवभक्त पृथ्वी मीना ने बताया, “हमें भगवान शिव का सबसे बड़ा सहारा मिला. मौसम साफ रहा जिससे हमारी यात्रा सुगम रही.” इस जत्थे में 20 साल के युवा से लेकर 65 साल के बुजुर्ग तक शामिल थे, और सभी ने कैलास दर्शन किए ।
कोरोना महामारी और भारत-चीन के बीच तनाव के कारण यह यात्रा पांच साल तक बंद रही थी. लेकिन अब, दोनों देशों की सरकारों के बीच सहमति के बाद 25 जून 2025 में तीर्थयात्रियों का ये दल पहुंचा.


पूर्वी लद्दाख गतिरोध के बाद भारत और चीन के बीच चार साल से अधिक समय तक द्विपक्षीय संबंधों में गर्मजोशी नहीं रही। पिछले साल रूस के कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच बैठक के बाद दोनों देश संबंधों को फिर से बहाल करने पर सहमत हुए थे।


कैलास मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करना दोनों देशों द्वारा संबंधों को सामान्य करने की दिशा में उठाया गया पहला कदम माना जा रहा है।


विजिट्स कैलास के द्वारा कैलास दर्शन के लिए अगला जत्था भी रवाना हो चुका है।

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