बजट से पहले क्यों पेश होता है आर्थिक सर्वे, आम लोगों के लिए क्या है खास

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) बजट (Budget 2024) पेश होने से इकोनॉमिक सर्वे संसद के पटल पर रखेंगी। यह बजट परंपरा का एक अहम हिस्सा है। इकोनॉमिक सर्वे को आप सरकार का रिपोर्ट कार्ड मान सकते हैं। इसमें पिछले वित्त वर्ष के कामकाज की समीक्षा की जाती है। साथ ही, आगे की ग्रोथ की संभावनाओं पर आधिकारिक नजरिया दिया जाता है।

इकोनॉमिक सर्वे क्या होता है?

आर्थिक सर्वे देश की इकोनॉमी का पूरा खाका पेश करता है। इसमें अर्थव्यवस्था की स्थिति, संभावनाओं और नीतिगत चुनौतियों का ब्यौरा होता है। इकोनॉमिक सर्वे में बीते वित्त वर्ष के रोजगार, जीडीपी, मुद्रास्फीति और बजट घाटे की जानकारी देने वाले काफी महत्वपूर्ण आंकड़े होते हैं। उनका व्यापक विश्लेषण भी होता है।

इकोनॉमिक सर्वे की जरूरत क्यों?

इकोनॉमिक सर्वे (Economic Survey) से पिछले वित्त वर्ष का हिसाब मिलता है और आगे की चुनौतियों का भी अंदाजा लगता है। इसमें चुनौतियों को दूर करने का सुझाव भी दिया जाता है। अलग-अलग सेक्टर, जैसे कि कृषि या ऑटोमोबाइल, की चुनौतियों और संभावनाओं का भी जिक्र होता है।

पहले बजट का हिस्सा था आर्थिक सर्वे

देश का पहला इकोनॉमिक सर्वे 1950-51 के दौरान पेश किया गया। उस वक्त यह बजट का हिस्सा था। लेकिन, 1964 से इकोनॉमिक सर्वे को बजट से एक दिन पहले पेश करने की परंपरा शुरू की गई। इससे बजट से पहले अर्थव्यवस्था का हाल और चुनौतियों का पता लग जाता है।

आम लोगों के लिए भी आर्थिक सर्वे जरूरी

आर्थिक सर्वे से यह समझने में मदद मिलती है कि देश की अर्थव्यवस्था किस हाल में है। महंगाई और बेरोजगारी जैसे महत्वपूर्ण आंकड़ों की भी जानकारी हो जाती है। इससे निवेश, बचत और खर्च तय करने जैसे फैसले लेने में आसानी होती है।

इकोनॉमिक सर्वे में सरकार की नीतियों की जानकारी होती है। इसमें उनके संभावित प्रभाव के बारे में भी बताया जाता है। इससे जनता समझ सकती है कि सरकार कौन-सी नीति लागू कर रही है और उसका असर क्या हो सकता है।

आर्थिक सर्वे में समाजिक और आर्थिक समस्याओं का भी विस्तृत ब्यौरा होता है। इसमें उन्हें निपटने का सुझाव भी होता है। इससे आम जनता को यह समझने में मदद मिलती है कि उनकी समस्याओं को कैसे दूर किया जा सकता है और इसमें उनकी भूमिका क्या हो सकती है।

यह सर्वे निवेशकों के लिए भी काफी अहम होता है। उन्हें यह समझने में सहूलियत होती है कि किन क्षेत्रों में निवेश के अच्छे मौके हैं। जैसे कि अगर सरकार का फोकस इन्फ्रास्ट्रक्चर पर तो यह सेक्टर निवेश के लिए अच्छा हो सकता है।

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