जाट आरक्षण पर पिछड़ा आयोग का भी AAP को जवाब, पढ़ें पूरी खबर…
दिल्ली में विधानसभा चुनाव के बीच अरविंद केजरीवाल ने बीते सप्ताह जाट समुदाय को दिल्ली में ओबीसी की केंद्रीय सूची में डालने का मुद्दा उठाया था। उनका आरोप था कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार बीते 10 सालों से इस मसले को दबाए बैठी है। वहीं इस पर भाजपा ने जवाब दिया था कि दिल्ली सरकार को इस प्रस्ताव को पहले विधानसभा से पारित कराना चाहिए था। फिर उस प्रस्ताव को केंद्र सरकार को भेजते तो मुहर लगती। इसके बाद अब पिछड़ा वर्ग आयोग ने भी आम आदमी पार्टी के दावों पर जवाब दिया है। पिछड़ा वर्ग आयोग का कहना है कि बीते 10 सालों में दिल्ली सरकार से ऐसा कोई प्रस्ताव ही नहीं भेजा गया, जिसमें मांग की गई हो कि राजधानी के जाटों को दिल्ली में केंद्र की सूची में शामिल किया जाए।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के चेयरमैन हंसराज अहीर ने कहा कि हमें दिल्ली के जाटों को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल करने का कोई प्रस्ताव नहीं मिला। ऐसा कुछ आता तो विचार जरूर किया जाता। दिल्ली में 5 फरवरी को विधानसभा चुनाव है और उससे पहले अरविंद केजरीवाल ने यह मसला उठाया था, लेकिन अब आम आदमी पार्टी खुद ही इस मामले पर घिरती दिख रही है। दिल्ली के किशनगढ़, मुनिरका, नरेला जैसे इलाकों में जाटों की अच्छी खासी आबादी है। ऐसे में बाहरी दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली के एक हिस्से में जाट मतदाता नतीजों पर असर डालने का दम रखते हैं। माना जा रहा है कि इसी रणनीति के तहत अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के जाटों को केंद्रीय ओबीसी लिस्ट में शामिल करने की मांग उठाई है।
हंसराज अहीर ने इकनॉमिक टाइम्स से बातचीत में साफ कर दिया है कि दिल्ली से कोई प्रस्ताव नहीं आया। उन्होंने कहा कि किसी भी राज्य के समुदाय को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल करने के लिए राज्य से ही प्रस्ताव आता है। उस प्रस्ताव से पहले संबंधित राज्य सरकार उनके पिछड़ेपन को लेकर स्टडी कराती है। इसके बाद विधानसभा में वह प्रस्ताव मंजूर होता है और केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा जाता है। उस प्रस्ताव पर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग फैसला लेता है। हंसराज अहीर ने यह भी बताया कि यूपीए के कार्य़काल में दिल्ली से दो बार जाटों को केंद्रीय पिछड़ा सूची में शामिल करने का प्रस्ताव भेजा गया था। लेकिन तब उसे खारिज कर दिया गया। यह प्रस्ताव पहले 2010 में भेजा गया था औऱ फिर 2014 के आम चुनाव से ठीक पहले गया था, लेकिन दोनों बार उसे मंजूरी नहीं मिल पाई।
बता दें कि पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य एके मंगोत्रा ने 26 फरवरी, 2014 को 138 पन्नों का एक लेटर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को भेजा था। इसमें उन्होंने दिल्ली, यूपी, बिहार, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, एमपी, उत्तराखंड और गुजरात को सलाह दी थी कि जाटों को पिछड़ा वर्ग की सूची में शामिल करने का प्रस्ताव खारिज कर दिया जाए।