मकर संक्रांति पर करें गंगा माता की स्तुति, अन्न-धन से भर जाएंगे भंडार
जब सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2025) का पर्व मनाया जाता है। इस दिन का काफी ज्यादा धार्मिक महत्व माना गया है। कहा जाता है कि मकर संक्रांति पर शुभ मुहूर्त में गंगा नदी में स्नान करने से व्यक्ति को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। गंगा जी की कृपा प्राप्ति के लिए गंगा स्तुति का पाठ करना भी एक बेहतर उपाय माना गया है। चलिए पढ़ते हैं श्री गंगा जी की स्तुति।
मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त
मकर संक्रांति पुण्य काल – सुबह 07 बजकर 33 मिनट से शाम 06 बजकर 56 मिनट तक
मकर संक्रांति महा पुण्य काल – सुबह 07 बजकर 33 मिनट से सुबह 09 बजकर 45 मिनट तक
मकर संक्रांति का क्षण – सुबह 07 बजकर 33 मिनट तक
श्री गंगा जी की स्तुति
गांगं वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतम् ।
त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु माम् ॥
माँ गंगा स्तोत्रम्॥
देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे
त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे ।
शङ्करमौलिविहारिणि विमले
मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥१॥
भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव
जलमहिमा निगमे ख्यातः ।
नाहं जाने तव महिमानं
पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥ २॥
हरिपदपाद्यतरङ्गिणि गङ्गे
हिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गे ।
दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं
कुरु कृपया भवसागरपारम् ॥ ३॥
तव जलममलं येन निपीतं,
परमपदं खलु तेन गृहीतम् ।
मातर्गङ्गे त्वयि यो भक्तः
किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥ ४॥
पतितोद्धारिणि जाह्नवि गङ्गे
खण्डितगिरिवरमण्डितभङ्गे ।
भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये,
पतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये ॥ ५॥
मकर संक्रांति के पावन अवसर पर गंगा या फिर किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करना काफी पुण्यकारी माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, इससे साधक के सभी पाप मिट जाते हैं और उसे जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिलती है।
कल्पलतामिव फलदां लोके,
प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।
पारावारविहारिणि गङ्गे
विमुखयुवतिकृततरलापाङ्गे ॥ ६॥
तव चेन्मातः स्रोतःस्नातः
पुनरपि जठरे सोऽपि न जातः ।
नरकनिवारिणि जाह्नवि गङ्गे
कलुषविनाशिनि महिमोत्तुङ्गे ॥ ७॥
पुनरसदङ्गे पुण्यतरङ्गे
जय जय जाह्नवि करुणापाङ्गे ।
इन्द्रमुकुटमणिराजितचरणे
सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ॥ ८॥
रोगं शोकं तापं पापं
हर मे भगवति कुमतिकलापम्।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे
त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे॥ ९॥
अलकानन्दे परमानन्दे
कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये ।
तव तटनिकटे यस्य निवासः
खलु वैकुण्ठे तस्य निवासः ॥ १०॥
वरमिह नीरे कमठो मीनः
किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।
अथवा श्वपचो मलिनो दीनस्तव
न हि दूरे नृपतिकुलीनः॥ ११॥
भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये
देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।
गङ्गास्तवमिमममलं नित्यं
पठति नरो यः स जयति सत्यम् ॥ १२॥
मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान के साथ-साथ दान आदि करना भी काफी लाभकारी माना गया है। इस दिन आप जरूरतमंद लोगों को गुड़, तिल, खिचड़ी और गर्म कपड़ों आदि का दान भी कर सकते हैं।
येषां हृदये गङ्गाभक्तिस्तेषां
भवति सदा सुखमुक्तिः ।
मधुराकान्तापज्झटिकाभिः
परमानन्दकलितललिताभिः ॥ १३॥
गङ्गास्तोत्रमिदं भवसारं
वाञ्छितफलदं विमलं सारम् ।
शङ्करसेवकशङ्कररचितं पठति
सुखी स्तव इति च समाप्तः ॥ १४॥
देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे
त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे ।
शङ्करमौलिविहारिणि विमले
मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥