कैसे होता है सप्तमी तिथि का श्राद्ध, जानिए इसका नियम

शिववार सोमवार को पितृ पक्ष की षष्ठी तिथि पर किसी भी मास की शुक्ल या कृष्ण पक्ष की षष्ठी को दिवंगत पितरों का श्रद्धा के साथ तर्पण किया गया। इसके साथ ही पूर्व पितरों( पितामह, प्रपितामह आदि) का श्राद्धकर्म किया गया। धर्म कर्म की दृष्टि से इस पक्ष को बहुत ही महत्व पूर्ण माना गया है।

षष्ठी तिथि पर पितरों को याद कर उनके प्रति आभार व्यक्त किया गया। मान्यता है कि पितृ पक्ष में पूर्वज पृथ्वी का भ्रमण करते हैं। इसलिए इस महीने में दान-पुण्य भी किया जा रहा है।

मध्यान्ह में किया श्राद्ध

षष्ठी तिथि पर सोमवार को कुतुप काल में और अभिजीत मुहूर्त पर मध्याह्न समय में श्राद्ध कर्म किया गया। पितृ पक्ष में पिंडदान का भी महत्व है। मान्यता के अनुसार पिंडदान में चावल, गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद को मिलाकर बने पिंडों को पितरों को अर्पित किया गया। ब्राह्मण भोज कराया गया।

सप्तमी श्राद्ध आज

जिस दिन अपरान्ह व्यापिनी तिथि 60 घड़ी से अधिक हो, उसी दिन उस तिथि का श्राद्ध करना चाहिए। इसलिए सप्तमी तिथि का श्राद्ध 24 सितंबर को किया जायेगा। सप्तमी तिथि में उन लोगों का श्राद्ध किया जायेगा, जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की सप्तमी को हुआ हो। उन्होंने बताया कि मंगलवार की दोपहर को सप्तमी तिथि रहेगी। मध्यान्ह व्यापिनी तिथि होने के चलते मंगलवार को ही सप्तमी का श्राद्ध होगा।

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