संतान की प्राप्ति और उनकी लंबी उम्र के लिए रखा जाता है जितिया का व्रत, जानिए तिथि और पूजा विधि

संतति की प्राप्ति के लिए जितिया का व्रत महिलाएं रखती हैं। इसके साथ ही बच्चों की लंबी उम्र के लिए भी इस व्रत को किया जाता है। इस व्रत को मुख्य रूप से यूपी, बिहार के साथ ही झारखंड की महिलाएं रखती हैं, जिसमें भगवान जीमूतवाहन की पूजा की जाती है।

आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया का व्रत किया जाता है। मान्यता है कि इस इस व्रत को करने से निसंतान दंपत्तियों के घर में किलकारी गूंजने लगती है। इसी वजह से इस व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत और जिउतिया व्रत भी कहा जाता है।

इस व्रत को यूपी, बिहार और झारखंड की महिलाएं करती हैं। यह व्रत काफी कठिन होता है क्योंकि इस दौरान महिलाएं निर्जला रहती हैं। इसके साथ ही भगवान जीमूतवाहन की पूजा की जाती है। इंदौर के ज्योतिषाचार्य पंडित गिरीश व्यास बताते हैं कि मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत से माताओं की गोद भर जाती है।

वहीं, जिन माताओं की संतान हैं, उन पर कोई कष्ट न आए। संतान से अलगाव का दुख नहीं सहना पड़ता है। बच्चों की उम्र लंबी रहे, इसके लिए भी महिलाएं इस व्रत को निर्जला रखती हैं।

25 सितंबर को रखा जाएगा व्रत

पंडित गिरीश व्यास ने बताया कि अष्टमी तिथि 24 सितंबर 2024 को मंगलवार की रात 12 बजकर 38 मिनट पर शुरू होगी। अष्टमी तिथि 25 सितंबर 2024 को यानी बुधवार को दोपहर 12.10 तक रहेगी। उदया तिथि के आधार पर जितिया व्रत 25 सितंबर को ही करना शुभ रहेगा।

इस दिन वरियान योग रहेगा। लग्न मुहूर्त सुबह 10:10 से दोपहर 12:20 तक रहेगा और चौघड़िया मुहूर्त सुबह 10:48 से दोपहर 12:18 तक रहेगा। पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 10.41 बजे से दोपहर 12.12 मिनट तक है।

सूर्यदेव की होती है पूजा

जितिया व्रत के दिन सुबह दैनिक नित्यकर्म करने के बाद भगवान भास्कर को अर्घ्य दें और उनकी पूजा करें। इसके बाद एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। उसके ऊपर थाली में सूर्य भगवान की मूर्ति रखकर दूध और जल से उनका अभिषेक करें।

इसके बाद धूप-दीप दिखाकर उन्हें अक्षत चढ़ाएं। इसके साथ ही निसंतान महिलाएं संतान प्राप्ति की मनोकामना कहें और जिन महिलाओं की संतान हैं, वे अपने बच्चों की लंबी उम्र की कामना करें। इसके साथ ही महिलाएं बच्चों पर भविष्य में आने वाले दुखों, संकटों को दूर करने के लिए भगवान से प्रार्थना करें।

संकल्प लेने के बाद जितिया व्रत की कथा सुनें। इसके बाद आरती करें और फल, मिष्ठान का भोग लगाकर पूजा को पूर्ण करें। अगले दिन सुबह व्रत का पारण करें।

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