हर 12 साल में लगता है महाकुंभ, समुद्र मंथन से जुड़ी है पौराणिक कथा

हम सभी जानते हैं कि हर 12 साल में महाकुंभ मेले का आयोजन होता है। कुंभ मेले का इतिहास बहुत ही रोचक है। हर 12 साल में कुंभ मेले का आयोजन देश में चार जगह पर किया जाता है, जिसमें हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन शामिल है।

नासिक और उज्जैन में हर साल कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। पिछली बार प्रयागराज में महाकुंभ साल 2013 में आयोजित किया गया था। इसके बाद अब 2025 में महाकुंभ आयोजित किया जाएगा।

ग्रहों की स्थिति के आधार पर मेले का आयोजन

कुंभ मेले का इतिहास 850 साल पुराना है। इसकी शुरुआत शंकराचार्य ने की थी। 12 सालों में लगने वाले महाकुंभ में दुनिया भर से लोग शामिल होते हैं। ज्योतिष के अनुसार, कुंभ मेले का आयोजन ग्रहों की स्थिति यानी कि बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश और सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के आधार पर होता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि कुंभ का आयोजन समुद्र मंथन के दौरान आदिकाल से ही हो गया था। जब देवताओं और राक्षसों ने मिलकर अमरता का अमृत उत्पन्न करने के लिए समुद्र मंथन किया था, उस समय सबसे पहले विष निकला था, जिसे भगवान शिव ने ग्रहण किया था। उसके बाद जब अमृत निकला, तो उसे देवताओं ने ग्रहण किया था।

12 स्थानों पर गिरी थी अमृत की बूंदें

  • काल भेद के कारण देवताओं के 12 दिन मनुष्य के 12 वर्षों के समान हैं, इसलिए महापर्व कुंभ हर स्थल पर 12 साल बाद लगता है।
  • समुद्र मंथन के दौरान देवता और राक्षसों के बीच अमृत के घड़े के लिए लड़ाई 12 दिनों तक चली थी, जो मनुष्य के लिए 12 साल के बराबर माना जाता है।
  • यही कारण है कि हर 12 साल बाद महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। कहा जाता है कि इस अवधि के दौरान नदियां अमृत में बदल गई थीं, इसलिए दुनिया भर के कई तीर्थयात्री पवित्रता के सार में स्नान करने के लिए कुंभ मेले में आते हैं।
  • पौराणिक कथा के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच 12 सालों तक संग्राम चला था। इस संग्राम में 12 स्थान पर अमृत की बूंदें गिरी थीं।
  • इसमें आठ जगह देवलोक और चार जगह पृथ्वी थी। जिन स्थानों पर यह अमृत गिरा था, वह प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक थे। जहां पर महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
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