जानिए मां कात्‍यायिनी की कैसे हुई थी उत्‍पत्ति…

20 अक्टूबर यानी आज शारदीय नवरात्र का छठा दिन है। नवरात्र के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। मां कात्यायनी सफलता और यश का प्रतीक हैं. वे सिंह पर सवार होने वाली देवी हैं, जो चतुर्भुज हैं. वे अपनी दो भुजाओं में कमल और तलवार धारण करती हैं. एक भुजा वर मुद्रा और दूसरी भुजा अभय मुद्रा में रहती है. कात्यायनी देवी का जन्म महाभारत काल में हुआ था। उनके जन्म की कहानी बहुत प्रसिद्ध है। 

मां कात्यायनी की कथा:-

महार्षि कात्यायन ने देवी आदिशक्ति की घोर तपस्या की थी। इसके परिणामस्वरूप उन्हें देवी उनकी पुत्री के तौर पर प्राप्त हुई थीं। देवी का जन्म महार्षि कात्यान के आश्राम में हुआ था। इनकी पुत्री होने के चलते ही इन्हें कात्यायनी पुकारा जाता है। देवी का जन्म जब हुआ था उस समय महिषासुर नाम के राक्षस का अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गया था। असुरों ने धरती के साथ-साथ स्वर्ग (heaven) में त्राही मचा दी थी। त्रिदेवों के तेज देवी ने ऋषि कात्यायन के घर अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन जन्म लिया था। तत्पश्चात, ऋषि कात्यायन ने मां का पूजन तीन दिन तक किया। फिर दशमी तिथि के दिन महिषासुर का अंत मां ने किया था। इतना ही नहीं, शुम्भ और निशुम्भ ने स्वर्गलोक पर आक्रमण कर दिया था। वहीं, इंद्र का सिंहासन भी छीन लिया था। केवल इतना ही नहीं नवग्रहों को बंधक भी बना लिया था। असुरों ने अग्नि एवं वायु का बल भी अपने कब्जे में कर लिया था। स्वर्ग से अपमानित कर असुरों ने देवताओं (gods) को निकाल दिया। तब सभी देवता देवी के शरण में गए एवं उनसे प्रार्थना (Prayer) की कि वो उन्हें असुरों के अत्याचार से मुक्ति दिलाए। मां ने इन असुरों का वध किया तथा सबको इनके आतंक से मुक्त किया।

ऐसा है मां का यह स्वरूप:-

पुराणों के अनुसार, कात्यायनी देवी की पूजा गृहस्थ एवं विवाह के इच्छुक लोगों के साथ-साथ शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में प्रयासरत भक्तों के लिए भी बहुत ही लाभदायक हैं, क्योंकि मां कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी है। मां कात्यायनी देवी का शरीर सोने की भांति चमकीला है। चार भुजा वाली मां कात्यायनी शेर पर सवार है, जिनके एक हाथ में तलवार (sword)और दूसरे हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। इसके साथ ही दूसरें दोनों हाथों में वरमुद्रा एवं अभयमुद्रा है।

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