जानिए मां स्कंदमाता की व्रत कथा…

19 अक्टूबर यानी आज शारदीय नवरात्र का पांचवा दिन है। नवरात्र के पांचवे दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। आप सभी को बता दें कि मां स्कंदमाता की पूजा करने से सभी कार्य पूरे होते हैं। ऐसे में आइये आपको बताते है माँ स्कंदमाता की कथा…

मां स्कंदमाता की कथा- 

कहा जाता है देवताओं के सेनापति कहे जाने वाले स्कन्द कुमार, यानि कार्तिकेय जी की माता होने के कारण ही देवी मां को स्कंदमाता कहा जाता है। इनके विग्रह में स्कन्द जी बालरूप में माता की गोद में बैठे हैं। आप सभी को बता दें कि माता का रंग पूर्णतः सफेद है और ये कमल के पुष्प पर विराजित रहती हैं, जिसके कारण इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है । जी हाँ और देवी मां की चार भुजायें हैं। इनमे ऊपर की दाहिनी भुजा में ये अपने पुत्र स्कन्द को पकड़े हुए हैं और इनके निचले दाहिने हाथ तथा एक बाएं हाथ में कमल का फूल है, जबकि माता का दूसरा बायां हाथ अभय मुद्रा में रहता है। जी दरअसल ऐसा माना जाता है कि देवी मां अपने भक्तों पर ठीक उसी प्रकार कृपा बनाये रखती हैं, जिस तरह एक मां अपने बच्चों पर बनाकर रखती हैं। वहीं मां अपने भक्तों को सुख-शांति और समृद्धि प्रदान करती हैं।

कुमुद के पुष्प का अर्पण:-

मां स्कंदमाता को कुमुद पुष्प देवी को अति प्रिय है। वैसे तो देवी पूजन में प्रयुक्त होने वाले सभी तरह के पुष्पों का अपना महत्व है। देवी को सभी तरह के पुष्प अर्पित किए जाते हैं, किन्तु यदि शास्त्रसम्मत बात करें तो स्कंदमाता के पूजन में कुमुद के पुष्प से पूजन अर्चन और मंत्र अर्चन करना उत्तम होता है।

खीर मालपुआ एवं ऋतुफल का भोग:-

अपने आराध्य को भाव से सामर्थ्य अनुसार, अर्पित भोग का फल प्राप्त होता है। साधक को भी पूजा करते वक़्त  इन बातों का विशेष तौर पर ख्याल रखना चाहिए। शास्त्रों में अलग-अलग दिन देवी की अलग-अलग शुरू के लिए इस बात की व्याख्या की गई है। पांचवें दिन स्कंद माता के स्वरूप की पूजा में देवी को खीर, मालपुआ का भोग लगाना चाहिए।

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