पितृपक्ष में जरूर करें ये काम, पूर्वज होंगे प्रसन्न

श्राद्ध-कर्म में तर्पण को सबसे अहम अंग माना गया है। तत्पश्चात, श्रद्धानुसार भोजन बनाकर कराना दूसरा अहम अंग है। तीसरा अंग है त्याग। इसके तहत श्राद्ध पक्ष में बनने वाले भोजन को 6 हिस्सों में विभाजित किया गया है। शास्त्रों में गाय, कौवा, बिल्ली, कुत्ता एवं ब्राह्मण को भोजन कराकर पितरों को सुखी एवं प्रसन्न करने की बात कही गई है। कहा जाता है कि पितरों के भाग के भोजन को इन्हीं हिस्सों से उन तक पहुंचाया जाता है। ऐसे में आवश्यक है कि श्राद्ध संपन्न करते वक़्त कुछ खास बातों का ध्यान रखा जाए।

पहला भाग गाय को

ग्रंथों में गाय को परम पवित्र तथा पातालवासिनी माना गया है। गाय के संपूर्ण अंगों में परमात्मा निवास करते हैं। शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि गाय के माध्यम से बैकुंठ के दर्शन होते हैं। यही वैतरणी पार लगाती है। इसलिए श्राद्ध के चलते गाय को भोजन कराने से पितृ प्रसन्न होते हैं तथा उनकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।

कौवे को दूसरा हिस्सा:-

श्राद्वान्न में दूसरा हिस्सा कौवे को समर्पित है। श्राद्ध पक्ष में कौवे को महत्व देने के पीछे वजह यह है कि जब समुद्र मंथन हुआ था तो कौवे ने अमृत पीकर अमरता प्राप्त कर ली थी। कहा जाता है कि कौवे अच्छे-बुरे कर्मों के साक्षी होते हैं। ये परमात्मा तक हमारे कर्मों का लेखा-जोखा पहुंचाते हैं। इन्हें पितरों का संदेशवाहक माना जाता है। इसलिए इन्हें कराया गया भोजन पितरों तक पहुंचता है तथा उन्हें संतुष्टि प्राप्त होती है।

ब्राह्मण भोज जरूरी:-

शास्त्रों में ब्राह्मण को गुरु के बराबर की पदवी दी गई है। इसलिए पितरों के मोक्ष के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराने का महत्व सबसे ज्यादा बताया गया है। इसमें यह बात ध्यान रखी जानी चाहिए कि ब्राह्मण अच्छे कर्म-कांड करने वाला होना चाहिए। श्राद्ध पक्ष में ब्राह्मण को हमेशा दक्षिण दिशा की ओर मुख करके ही भोजन कराना चाहिए तथा भोज के पश्चात् यथाशक्ति दान करना चाहिए।

कुत्तों को भी श्राद्धान्न:-

कुत्ते को भी पितरों की मुक्ति के लिए अहम माना गया है। कहा जाता है कि जब पांडव स्वर्गारोहण के लिए निकले थे तो धर्मराज युधिष्ठिर के साथ एक कुत्ता भी गया था। इसलिए कुत्ते को धर्म का प्रतीक कहा गया है। मान्यता है कि पितरों के भोजन का एक हिस्सा कुत्तों को खिलाने से भी पितृ प्रसन्न होते हैं।

कुश और तिल का महत्व:-

प्रभु श्री विष्णु बोलते हैं कि तिल मेरे पसीने से उत्पन्न हुए हैं तथा कुश मेरे शरीर के रोगों से उत्पन्न है। इसीलिए तर्पण, दान और होम में किया गया तिल का दान अक्षय होता है। एक तिल का दान स्वर्ण के बत्तीस सेर तिल के बराबर है। कुश के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और अग्रभाग में शिव का वास है, इसलिए धार्मिक कार्यों में कुश भी शुभ है।

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