UP: बिना बताए ड्यूटी से गायब चल रहे 742 डॉक्टर होंगे बर्खास्त, पढ़ें पूरी खबर
लखनऊ, बिना बताए ड्यूटी से गायब चल रहे 742 डॉक्टरों को जल्द बर्खास्त किया जाएगा। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य महानिदेशालय की ओर से शासन को पत्र भेजकर इन पर कार्रवाई की सिफारिश की गई है। इस सूची में पांच वर्ष से अनुपस्थित चल रहे डॉक्टरों के नाम हैं, लेकिन एक व दो वर्ष से गायब चल रहे चिकित्सकों की संख्या इसमें ज्यादा है। फिलहाल, अब इन्हें बाहर किए जाने के बाद खाली हुए पदों पर नई भर्ती होगी।
742 डॉक्टरों की सूची शासन को भेजी गई
विभाग पहले से ही चिकित्सकों की कमी से झेल रहा है। 19,700 पदों के सापेक्ष सिर्फ 11 हजार पद ही भरे हैं। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य निदेशक (प्रशासन) डॉ. राजा गणपति आर ने बताया कि 742 डॉक्टरों की सूची शासन को भेज दी गई है। इन डॉक्टरों को तीन-तीन बार नोटिस जारी किए गया और उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला। ऐसे में अब इन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा।
प्राइवेट अस्पतालों में चले गए ज्यादातर डॉक्टर
ज्यादातर डॉक्टर बिना जानकारी दिए नौकरी छोड़कर प्राइवेट अस्पतालों में चले गए हैं। प्राइवेट अस्पतालों में यह अच्छे वेतन और सुख-सुविधाओं के लालच में चले गए हैं। जांच में यह भी सामने आ रहा है कि कुछ डॉक्टर गायब होने के बावजूद जिलों में मुख्य चिकित्सा अधिकारियों (सीएमओ) कार्यालय से सांठगांठ कर वेतन भी ले रहे हैं। फिलहाल, जिलों से तैनात चिकित्सकों के मुकाबले कितने चिकित्सक ड्यूटी पर उपस्थित हैं और जो छुट्टी पर चल रहे हैं, उनका ब्योरा लेकर मिलान किया गया तो इतने बड़ी संख्या सामने आई।
2010 में भी ऐसे करीब 180 डॉक्टरों को किया गया था बर्खास्त
वर्ष 2010 में भी ऐसे करीब 180 डॉक्टरों को बर्खास्त किया गया था। उस समय जो सूची तैयार हुई थी उसमें 10 वर्ष से गायब चल रहे डॉक्टरों के नाम शामिल थे। उस समय इन चिकित्सकों की सर्विस की निरंतरता व आचरण की वार्षिक गोपनीय आख्या (एसीआर) न होने के आधार बनाकर कार्रवाई की गई थी।
कई डॉक्टर पीजी कर भाग गए
बर्खास्तगी के लिए डॉक्टरों की जो सूची तैयार की गई उसमें कई ऐसे हैं जो एमबीबीएस कर सरकारी नौकरी में आए और फिर स्नातकोत्तर (पीजी) की पढ़ाई कर निकल लिए। क्योंकि एमबीबीएस पास डॉक्टरों को एक वर्ष की सेवा करने पर नीट-पीजी में 10 प्रतिशत, दो वर्ष पर 20 प्रतिशत और तीन वर्ष या इससे अधिक की सेवा होने पर अधिकत 30 प्रतिशत वेटेज मिलता है। ऐसे में इसका लाभ लेकर पीजी किया और फिर निकल गए। कुछ ऐसे पीजी पास डॉक्टर हैं, जिन्होंने सीधे लेवल टू यानी विशेषज्ञ डॉक्टर के रूप में नौकरी ज्वॉइन की थी, लेकिन बाद में अत्याधिक काम व कम सुविधाओं के कारण उनका मोहभंग हो गया और वह प्राइवेट अस्पताल नौकरी करने चले गए।
सरकारी के मुकाबले प्राइवेट में सुविधाएं ज्यादा
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा सरकारी अस्पताल में तैनात नए डॉक्टर को 70 हजार रुपये मासिक वेतन मिलता है और सबसे सीनियर जो रिटायरमेंट के करीब होते हैं उन्हें तीन से साढ़े तीन लाख रुपये तक मासिक वेतन मिलता है। वहीं, चिकित्सकों की कमी व मरीजों की ज्यादा भीड़ के कारण डॉक्टरों पर काम का बोझ ज्यादा है। वहीं, प्राइवेट अस्पतालों में उन्हें शुरुआत में ही दो से ढ़ाई लाख तक वेतन व बेहतर सुविधाएं मिलती हैं। तमाम डॉक्टर पांच-पांच लाख तक वेतन पाते हैं और काम का बोझ भी नहीं रहता।