पेशाबकांड मामले में सीएम शिवराज से ब्राह्मण संगठन ने जताई नाराजगी, जानिए वजह…

मध्य प्रदेश के सीधी जिले में हुए पेशाबकांड पर शिवराज सरकार की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं। पीड़ित दशमत के पैर धोकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासियों की संभावित नाराजगी को कम करने की कोशिश की तो आरोपी प्रवेश शुल्का का घर तोड़े जाने की वजह से अब ब्राह्मण संगठन नाराज हो गए हैं। ब्राह्मण संगठन एक तरफ प्रवेश शुक्ला का घर दोबारा बनाने के लिए चंदा जुटा रहे हैं तो दूसरी तरफ कानूनी लड़ाई लड़ने का भी फैसला लिया गया है। विधानसभा चुनाव से पहले ब्राह्मणों की लामबंदी शिवराज सरकार की मुश्किलें बढ़ा सकती हैं।

प्रवेश शुक्ला का घर तोड़े जाने की वजह से ब्राह्मणों से जुड़े कुछ संगठन नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। इस घर में प्रवेश शुक्ला अपनी पत्नी, तीन साल की बच्ची और मां-बाप के साथ रहता है। प्रवेश की पत्नी कंचन ने कहा कि कुर्बी गांव में मकान उनकी दादी ने बनवाया था। यह प्रवेश या उसके पिता के नाम पर नहीं था। शुक्ला के समर्थन में लामबंद हो रहे ब्राह्मण संगठनों का कहना है कि वह प्रवेश के अपराध का बचाव नहीं कर रहे हैं, लेकिन उसके किए की सजा परिवार को क्यों दी गई? मकान पर बुलडोजर क्यों चलाया गया?

प्रवेश शुक्ला के पिता रमाकांत शुक्ला के अकाउंट नंबर को ब्राह्मण संगठनों के वॉट्सऐप ग्रुप और सोशल मीडिया ग्रुप्स में शेयर किया जा रहा है। पूरे राज्य के लोग चंदा दे रहे हैं। अखिल भारतीय ब्राह्मण समाज के प्रदेश प्रमुख पुष्पेंद्र मिश्रा ने कहा, ‘संगठन उस मकान को दोबारा बनाएगा जिसे ढहा दिया गया। आरोपी ने जो किया वह सजा योग्य है, लेकिन परिवार क्यों भुगते? हमने शुरुआत में 51000 रुपए दिए और परिवार के मुखिया का नंबर पूरे संगठन में बांटा गया है। घर बनाने के लिए लोग सहयोग दे रहे हैं।’

टीओआई से मिश्रा ने यह भी कहा कि संगठन मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में याचिका भी दायर करेगा। सरकार से यह पूछा जाएगा कि किस कानून के तहत परिवार का वैध घर गिरा दिया गया। प्रवेश के पिता रमाकांत शुक्ला ने कहा, ‘वह मेरा बेटा है, लेकिन कानून को मानने वाला नागरिक हूं। मेरे बेटे के खिलाप संविधान के मुताबिक किसी कानूनी कार्रवाई मंजूर है। लेकिन हमारा घर क्यों गिराया गया? मध्य प्रदेश का कानून कहता है कि अतिक्रमण को बरसात के मौसम में नहीं गिराया जाएगा। हमारा परिवार बिना किसी गलती की सजा भुगत रहा है। पहले एक दो दिन पड़ोसियों ने हमारे लिए खाने की व्यवस्था की। अब हम किसी तरह जुटा रहे हैं।’

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