भगवान विष्णु से जुड़ी सदियों पुरानी परंपरा के कारण बंद हुआ केरल एयरपोर्ट, जानें इसके पीछे का कारण
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर एक नवंबर की दोपहर से पांच घंटों के लिए विमान सेवाएं बाधित रही। इन सेवाओं के बाधित रहने के पीछे कोई तकनीकी खामी नहीं बल्कि धार्मिक कारण बताया गया है। माना जाता है कि भगवान विष्णु को स्नान कराने के लिए रनवे से निकलने वाले जुलूस अरट्टू के कारण सेवाओं को बाधित किया जाता है।
मशहूर पद्मनाभ स्वामी मंदिर से जुड़ी सदियों पुरानी परंपरा को निभाने के लिए हर वर्ष दो बार उड़ानों में परिवर्तन किया जाता है। बता दें कि जुलूस अरट्टू को एयरपोर्ट के रनवे के पास से गुजारा जाता है, जिस कारण सेवाओं को बंद किया जाता है। मंदिर का यह जुलूस 5000 साल से ऐसे ही निकलता आ रहा है। गौरतलब है कि तिरुवनंतपुरम का अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बहुत बिजी एयरपोर्ट है।
ये फ्लाइट्स हुई रद्द
एयरपोर्ट के अधिकारियों के अनुसार मंदिर के जुलूस के साथ ही इस दिन अलपसी उत्सव भी पूरा हो गया है। इस उत्सव और जुलूस के कारण फ्लाइट्स को स्थगित किया जाता है। जानकारी के मुताबिक एयरपोर्ट पर एयरइंडिया एक्सप्रेस, इंडिगो और एयर अरबिया सहित कम से कम 10 फ्लाइट्स रद्द की गईं थी।
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वर्षों पुरानी है परंपरा
बता दें कि श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर से जुलूस निकाले जाने की परंपरा सदियों पुरानी है। इस जुलूस को सही ढंग से बिना व्यवधान के निकाला जा सके इसलिए पांच घंटों के लिए सेवाओं को बाधित किया जाता है। तिरुवनंतपुरम के इंटरनेशनल एयरपोर्ट का मैनेजमेंट बीते वर्ष से अडाणी समूह के हाथों में है, मगर फिर भी ये परंपरा सुचारू रूप से जारी रही है।
मैनेजमेंट ने दी थी जानकारी
अलपसी अरट्टू जुलूस निकाले जाने के संबंध में अलपसी अरट्टू जुलूस सूचना साझा कर दी थी। इसके साथ ही ये भी कहा गया था कि जुलूस को निकालने के लिए सदियों पुरानी परंपरा का पालन होगा। बता दें कि जुलूस निकालने के लिए घरेलू और इंटरनेशनल फ्लाइट्स सेवाओं के कार्यक्रम में बदलाव किया गया था।
रनवे के पास है मंडप
दरअसल यहां रनवे के पास ही मंडप बना हुआ है, जहां मंदिर की प्रतिमाओं को जुलूस के दौरान रस्म के लिए कुछ समय के लिए रखते है। इस रस्म को वर्षों नहीं बल्कि सदियों से निभाया जा रहा है। पारंपरिक तरीके से इस जुलूस को निकाला जाता है, जिसमें एयरपोर्ट अथॉरिटी के साथ विमानन कंपनियां भी पूरा सहयोग देती हैं। मंदिर की परंपरा के अनुसार मंदिर के देवताओं की प्रतिमाओं को वर्ष में दो बार स्नान कराने के लिए समुद्र में ले जाया जाता है। ये रास्ता हवाई अड्डे के रनवे के पीछे से ही होकर गुजरता है। बता दें कि हवाई अड्डे का निर्माण वर्ष 1992 में किया गया था, मगर जुलूस का रास्ता यहां से कई वर्षों पूर्व से होता रहा गया है।