सिन्धी समाज भी निभाए समर्पित भूमिका : साईं मसन्द

रायपुर। देश के महान संतों के सहयोग से भारत को पुनः विश्व गुरु एवं समृद्ध राष्ट्र बनाने हेतु देश में पुनः धर्म का शासन लागू कराने का अभियान चलाया जा रहा है।

मसन्द सेवाश्रम रायपुर द्वारा सितम्बर 2012 से, करीब नौ वर्षों से यह अभियान चल रहा है। सेवाश्रम के पीठाधीश साईं जलकुमार मसन्द ने लखनऊ में गत् दिनों आयोजित संत आसूदाराम साहिब के 61वें वर्सी महोत्सव में इस योजना पर विस्तार से प्रकाश डाला।

अपने स्वजातीय सिन्धी समाज से भी इस अभियान में अपनी समर्पित भूमिका निभाने का आह्वान किया।

साईं मसन्द ने कहा कि अतीत में भारत के विश्व गुरु व समृद्ध राष्ट्र होने का मुख्य आधार देश में धर्म के शासन की प्रणाली लागू होना रहा है।

इसके अंतर्गत हर युग में देश का शासन करने वाले हर छोटे-बड़े राजा का एक राजगुरु होना अनिवार्य रहा। सभी राजा अपने राजगुरुओं के मार्गदर्शन में राजकाज चलाते थे।

राजाओं के राजगुरु ईश्वर की वाणी माने जाने वाले सनातन वैदिक ज्ञान के प्रकाण्ड ज्ञानी हुआ करते थे।

सनातन वैदिक सिद्धांत जहां मानव जीवन को एक ओर सुखमय, आनंदमय, समृद्ध एवं कल्याणकारी बनाते हैं, वहीं दूसरी ओर वे हमारे मूल लक्ष्य ईश्वर को प्राप्त करने का मार्ग भी प्रशस्त करते हैं।

उन्होंने कहा कि भारत के इतिहास में हमने पाया है कि जब भी किसी राजा ने अपने राजगुरु से मुख मोड़कर अपने मनमुताबिक राजकाज चलाया, तब-तब वह धीरे-धीरे भ्रष्ट हो जाता था।

इसका कारण यह है कि वह राजगुरु से दूर रहने से वस्तुतः वह अध्यात्म से दूर हो जाता था। उन्होंने बताया कि मनुष्य की प्रकृति है कि वह जब अध्यात्म से संलग्न रहता है तब प्रायः परोपकारी वृत्ति का रहता है और जब वह अध्यात्म से दूर होता है तब वह धीरे-धीरे स्वार्थी व पथभ्रष्ट हो जाने के अलावा प्रायः चरित्रहीन भी हो जाता है।

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