निधिवन में रात को आकर रास रचाते हैं कन्‍हैया,किसी को नहीं करने दिया जाता है प्रवेश

दिल्लीः कहते हैं कि ब्रजभूमि का कोना-कोना भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का गवाह रहा है. यहां ऐसे अनेक स्‍थान हैं, जहां श्रीकृष्ण के जन्‍म से लेकर किशोरावस्‍था तक की घटनाओं की निशानियां मिलती हैं. श्रीकृष्ण सखा-स‍खियों के साथ रास रचाते थे. उनके हाथ में मुरली, सिर पर मोर पंख का मुकुट और आस-पास गाय-बछड़े होते थे. उन्‍होंने वृंदावन को जग में सबसे न्‍यारा बताया था, इसलिए वृंदावन के पग-पग में राधा-कृष्ण की गूंज सुनाई देती है. वृंदावन में ही एक वन है- निधिवन (Nidhivan). जहां तुलसी-कदम्‍ब जैसे पेड़ हैं. यहीं झाड़ों के बीच एक छोटा-सा महल है- रंग महल. यही वो महल है, जिसके बारे में मान्‍यता है कि यहां आज भी कान्‍हा रात को रास रचाते हैं. मगर उन्‍हें कोई देख नहीं पाता. शाम ढलते ही निधिवन दर्शकों के लिए बंद कर दिया जाता है. उसके बाद यहां कोई नहीं रहता. विशेषकर, शरद पूर्णिमा की रात, निधिवन में प्रवेश पूरी तरह वर्जित रहता है.

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निधिवन के सेवायत गोस्वामी कहते हैं, ‘यह कन्‍हैया की माया है, उनकी अब भी रासलीला होती है. तुलसी की जो लताएं हैं, वही गोपिका बन जाती हैं और वन के अन्‍य पेड़ ग्‍वाल-बाल.’ वृंदावन के लोग बताते हैं कि दिन में यहां श्रद्धालुओं के आवागमन पर कोई रोक नहीं है. मगर शाम होते ही निधिवन को खाली करा लिया जाता है. कहते हैं कि यहां जिसने रात को रुककर रासलीला देखने की कोशिश की, वो होश खो बैठा. पागल हो गया.

कुछ लोग निधिवन में यही जानने आते हैं कि भला रात को क्‍या होता होगा. निधिवन में राधारानी का प्राचीन मंदिर है. इसके अलावा ‘रंग महल’ वो जगह है, जिसकी छत के नीचे श्रीकृष्ण के लिए सूर्यास्‍त के बाद भोग रखा जाता है, दातून रखी जाती है. लेकिन सुबह होने पर वहां कुछ नहीं मिलता, इसलिए भक्‍त कहते हैं कि कान्हा निशानियां भी छोड़ जाते हैं.

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