राज्य सरकारों को तकनीक की मदद से कसना होगा दंगाईयो पर सिकंजा

दिल्लीः

महात्मा गांधी का मानना ​​​​था कि हिंसा एक ऐसा हथियार है, जो समाधान के बजाय समस्याएं ज्यादा पैदा करता है. मार्टिन लूथर किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला ने भी अलोकतांत्रिक और अनुचित शासन का विरोध लगातार शांतिपूर्ण तरीके से ही किया. 1957 में मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने अपने मशहूर ‘गिव अस द बैलट’ संबोधन के जरिए अफ्रीकी अमेरिकियों के लिए ‘मतदान के अधिकार’ की मांग शांति से ही की. अफ्रीकी अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन के लिए उन्होंने गांधी की अहिंसा और सविनय अवज्ञा को ही हथियार बनाया.

भारत एक प्रगतिशील संविधान वाला कार्यात्मक लोकतंत्र है. हम भारत के नागरिकों का फर्ज बनता है कि राजनीतिक राय दर्ज करानी हो तो मतपत्रों के जरिए आवाज उठाएं. विरोध करना हो तो शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करें. हिंसक प्रदर्शन बिल्कुल नहीं होना चाहिए. हिंसा एक आदम जमाने की चीज है, जिसे हमने दमनकारी अंग्रेजों के खिलाफ भी नहीं अपनाया था.

प्रशासन के फैसलों और उसके ठीक से काम करने के खिलाफ भावनात्मक रूप से परेशान होना गलत नहीं है, लेकिन इसके लिए दूसरे नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन करना या सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करना तार्किक या कानूनी रूप से स्वीकार्य नहीं है. हिंसा के जरिए अपनी भावनाओं को व्यक्त करने और उसे जायज ठहराने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. ऐसे में सेना में भर्ती की नई अग्निपथ योजना के विरोध में सार्वजनिक संपत्ति को बिना सोचे-समझे नुकसान पहुंचाना भी कोई अनोखी बात नहीं है.

6 अगस्त 2019 को संवैधानिक रास्ता अपनाकर जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाई गई, लेकिन इसका विरोध हिंसा से किया गया. 31 जुलाई 2019 को संसद के जरिए ट्रिपल तलाक को अपराध घोषित करने का कानून लागू हुआ तो भी हिंसक प्रतिक्रिया हुई. 12 दिसंबर 2019 को नागरिकता संशोधन अधिनियम कानून बना तो देश भर में हिंसक प्रदर्शनों में कम से कम 76 लोगों की जान चली गई. 2020 के कृषि कानूनों में संशोधन हुआ तो हिंसक विरोध प्रदर्शनों के दौरान बसों और पुलिस वाहनों को आग में झोंक दिया गया, 1,500 से अधिक मोबाइल टावरों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया.

ये प्रवृत्ति परेशान करने वाली है. खासकर तब जब निर्वाचित संसद के फैसलों को हिंसक विरोध के जरिए पलटने की कोशिश की जाती है. ऐसा इसलिए कि प्रदर्शनकारियों के पास लोकतांत्रिक और संवैधानिक रास्ता अपनाने का धैर्य नहीं है. विरोध करने का अधिकार लोकतंत्र में इकट्ठा होने, सभा करने और अपनी बात रखने की आजादी के अधिकार की अभिव्यक्ति है. हालांकि सरकार के खिलाफ प्रतिशोध में हिंसा और आगजनी की घटनाएं लोकतंत्र पर सीधे वार करती हैं. संवैधानिक रूप से चुनी हुई सरकार की तुलना किसी बर्बर या फासीवादी तानाशाही से करना और सड़कों पर युद्ध छेड़ना हास्यास्पद ही है. दंगा करने वाले ये मानते हैं कि कानून के हाथ उन तक नहीं पहुंच पाएंगे, भीड़ में उनकी पहचान नहीं हो पाएगी और गिरफ्तारी नहीं होगी, लेकिन ये सच नहीं है

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