भारत को कूटनीतिक सीख देने वालों को भारत का खरा जवाब

दिल्ली: यूक्रेन-रूस युद्ध पर अपनी स्थिति बार बार साफ करने के बावजूद कुछ यूरोपीय देश भारत को इस बारे में ज्ञान देने से नहीं चूकते लेकिन भारत भी इन देशों को साफ शब्दों में जबाव देने लगा है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में गुरुवार को यूक्रेन-रूस युद्ध पर विशेष सत्र में भारत के राजदूत टीएस त्रिमूर्ति ने भारत के इस मत को दोहराया कि इस विवाद का समाधान दोनों पक्षों के बीच कूटनीतिक पहल से ही होगा और युद्ध में कोई भी पक्ष विजयी नहीं होगा।

त्रिमूर्ति ने यूएनएससी में अपने बयान को सोशल मीडिया साइट पर भी डाला। इस पर नीदरलैंड के ब्रिटेन में राजदूत ने कारेल ओस्टोरम ने टिप्पणी की और लिखा कि, ‘भारत को यूक्रेन पर वो¨टग के समय अनुपस्थित नहीं रहना चाहिए था।’ इस पर त्रिमूर्ति ने तुरंत जबाव दिया,’माननीय राजदूत कृपया हमें सीख मत दीजिए, हमें मालूम है कि हमें क्या करना है।’

त्रिमूर्ति के इस जबाव के बाद कई भारतीयों ने भी नीदरलैंड के राजदूत की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया दी। कूटनीतिक हलचल बढते देख राजदूत ओस्टोरम ने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया। लेकिन इस घटना ने भारत की यूक्रेन-रूस नीति को लेकर पश्चिमी देशों के रवैये को फिर सामने ला दिया है। फरवरी के अंत में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था तब यूएनएससी में कई मौकों पर भारत वोटिंग के समय अनुपस्थित रहा था।

भारत का कहना है कि उसने तटस्थ होने की अपनी रणनीति का पालन किया है। इस पर शुरु से ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों ने भी सख्त टिप्पणी की थी। भारत के दौरे पर आये अमेरिका के डिप्टी एनएसए ने यहां तक कहा था कि रूस को भारत मदद करता है तो उसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। लेकिन बाद में पीएम नरेन्द्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कई मौकों पर भारत की रणनीति जब स्पष्ट की तब जा कर पश्चिमी देशों का रवैया बदला है।

रूस से तेल खरीदने के मुद्दे पर भी सीख देने वालों को जयशंकर ने करारा जवाब दिया था कि, रूस से जितनी ऊर्जा यूरोपीय देश खरीद रहे हैं भारत उसका एक दहाई हिस्सा भी नहीं खरीद करता है। गुरुवार को यूएएससी में भारतीय राजदूत त्रिमूर्ति ने यूक्रेन-रूस युद्ध पर भारत का वही पक्ष रखा जो पिछले दिनों पीएम मोदी ने अपनी यूरोप यात्रा के दौरान रखी थी।

त्रिमूर्ति ने कहा कि हम शुरु से ही हिंसा को समाप्त करने और उसकी जगह कूटनीतिक वार्ता की पैरवी कर रहे हैं। भारत हमेशा से शांति के पक्ष में है क्योंकि इस तरह के युद्ध में कोई भी पक्ष विजयी नहीं होता है। बुचा में निर्दोष नागरिकों के मारे जाने की कड़ी निंदा करते हुए भारत ने स्वतंत्र एजेंसियों से उसकी जांच करवाने की मांग दोहराई है। 

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