चूक न हो जाए

भले ही देश में जमीनी स्तर पर चिकित्सा सुविधाएं पर्याप्त न हों पर हम अपनी पीठ थपथपा सकते हैं कि देश में 96 करोड़ से अधिक लोगों को एक कोरोनारोधी वैक्सीन की डोज़ लग चुकी है तथा 25 फीसदी से अधिक लोगों ने दोनों डोज़ लगवा ली हैं। संभवत: इतनी बड़ी आबादी को दुनिया में कहीं भी इतनी डोज़ नहीं दी जा सकी होंगी।

देश कोरोना की बंदिशों से खुलने लगा है। स्कूल खुलने लगे हैं और भले ही ज्यादा बच्चे कक्षाओं में न पहुंच पा रहे हों, लेकिन देश सामान्य स्थिति की ओर बढ़ रहा है। अच्छी बात यह है कि बच्चों के लिये वैक्सीन का इंतजार अब खत्म होने को है। पहले यह कहकर भय फैलाया जा रहा था कि तीसरी लहर का बच्चों पर ज्यादा असर होगा।

यह कोई विशेषज्ञ राय भी नहीं थी, लेकिन एक आम धारणा इसे दोहराने की बन गई थी। अच्छी बात यह है कि बच्चों के लिये कोवैक्सीन की वैक्सीन आ गई है। भारत बायोटेक के मुताबिक सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी ने वैक्सीन के ट्रायल की रिपोर्ट को हरी झंडी दे दी है जिसे भारतीय औषधि महानियंत्रक की मंजूरी की प्रतीक्षा है।

इससे पहले जायडस कैडिला की वैक्सीन जायकोव-डी को बच्चों पर लगाने की अनुमति मिल चुकी है और अक्तूबर के मध्य तक बाजार में आने की बात कही जा रही है। कह सकते हैं कि अब भारत बच्चों की वैक्सीन से एक कदम ही दूर है।

यह अच्छी बात है कि देश में कोरोना संक्रमण की दर लंबे समय बाद बीस हजार से कम है और मृतकों की संख्या में भी गिरावट आई है। यहां तक कि सर्वाधिक तेजी से संक्रमित हो रहे राज्य केरल में अब संक्रमण में गिरावट का दौर है। पूर्वोत्तर जहां डेल्टा वैरियंट देर से पहुंचा, वहां संक्रमण का बढ़ना निश्चित ही चिंता की बात है।

बहरहाल, जब त्योहार संस्कृति के देश में पर्वों की शृंखला दस्तक दे रही है, तब हालात संयम की मांग करते हैं। लोग सार्वजनिक जगहों में कुछ इस कदर लापरवाह हो गये हैं कि जीवन रक्षा उपायों की अनदेखी कर रहे हैं। जैसे-जैसे दशहरा, दीवाली व छठ जैसे सामूहिकता के उत्सव करीब आ रहे हैं, जनता की लापरवाही पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय भी चिंता जता रहा है कि किये करे पर पानी फिर सकता है।

दुनिया में कई ऐसे उदाहरण हैं कि लोगों ने कोरोना संक्रमण की चुनौती को समाप्त मानकर स्वच्छंद जीवन जीना शुरू किया तो और भयावह रूप सामने आया है। देश लॉकडाउन से पहले की स्थिति में लौट रहा है। अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है।

विश्व रेटिंग एजेंसी व आईएमएफ दुनिया की सबसे तेज अर्थव्यवस्थाओं में भारत को शुमार कर रहे हैं। लेकिन यह त्योहारी मौसम बेहद सावधानी की मांग कर रहा है। यदि ऐसा नहीं होगा तो कोरोना के खिलाफ हमारी लड़ाई कमजोर हो सकती है। ध्यान रहे कि विश्व स्वास्थ्य संगठन बार-बार चेता रहा है कि महामारी पर काबू पाने में वक्त लग सकता है।

गरीब देशों में टीकाकरण की जैसी दयनीय स्थिति है, उसे देखते हुए ग्लोबलीकरण के इस दौर में कोई और भयावह वैरियंट भेष बदलकर आ सकता है। बहरहाल, पूर्व में संक्रमित हो चुके और टीका लगा चुके लोगों द्वारा हासिल प्रतिरोधक क्षमता हमारे विश्वास का आधार है कि हम कोरोना को हरा सकते हैं। लेकिन जब तक दुनिया के सभी मुल्क वायरस के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता हासिल नहीं कर लेते तब तक हम कोरोना पर नियंत्रण को लेकर आश्वस्त नहीं हो सकते।

हम न भूलें कि देश में अभी 18 साल से कम उम्र आयु वर्ग को टीका नहीं लगा। केंद्र के अनुसार भारत में 18 साल से कम उम्र के बच्चों की संख्या 42 से 44 करोड़ के बीच है, जिनके लिये 84 से 88 करोड़ वैक्सीन की जरूरत होगी। तभी सरकार टीकों की उपलब्धता को देखते हुए इसे चरणबद्ध ढंग से शुरू करने की तैयारी कर रही है। उसकी प्राथमिकता पहले को-मॉर्बिट बच्चों को टीका लगाने की है, जो गंभीर रोगों से जूझ रहे हैं। 

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