मिशन 2022ः भाजपा और सपा का टारगेट ओबीसी

मायावती और प्रियंका गांधी ने भी झोंक रखी ताकत
निर्णायक भूमिका में आ सकते हैं पिछड़ी जातियों के मतदाता

लखनऊ,संवाददाता। 2022 में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दल अपनी-अपनी तैयारी में जुटे हैं।

सबकी निगाहें ओबोसी जातियों पर नजर है। सूबे में करीब 52 फीसदी आबादी पिछड़ी जातियों की है। इस बार मुख्य मुकाबला बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच होने के प्रबल आसार है।

पिछड़ी जातियों के मतदाताओं के निर्णायक भूमिका में रहने की उम्मीद है। बीएसपी सुप्रीमो मायावती और कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने भी काम तेज कर दिया है। चुनाव में कोई कसर नहीं छोड़ने वाली नहीं हैं।

ओबीसी वोट बैंक को लेकर बीजेपी-सपा में तो होड़ है। भाषण में भले जाति और समुदाय की मुखालफत होती दिखे मगर राजनीति जातिवाद और समुदाय वाद से इतर नहीं रह पा रही है।यूपी में चुनाव हो और जातीय मुद्दा न उठे, यह संभव नहीं है।

बीजेपी और सपा ओबीसी वोट बैंक को लेकर आमने-सामने हैं। 2014, 2017 और 2019 के चुनाव में यूपी में गैर यादव ओबीसी वोट बीजेपी ले गई और बीजेपी की यूपी में बल्ले बल्ले रही। 2022 का चुनाव सपा और भाजपा दोनों का भविष्य लिखने वाला है।

अखिलेश यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती गैर यादव ओबीसी वोट जोड़ने की है। सपा के लिए 2022 का चुनाव बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह चुनाव न सिर्फ सपा का भविष्य तय करेगा, बल्कि 2024 के लोकसभा चुनावी दिशा भी तय करेगा।

6 महीने से अखिलेश यादव का फोकस गैर यादव ओबीसी और दलित वोट पर ज्यादा है।अखिलेश यादव जानते हैं कि सपा के साथ पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियां नहीं आती हैं, तो डगर कठिन होगी।

वे सामाजिक समीकरण फिट करने में जुटे हैं। बीएसपी, कांग्रेस और बीजेपी के ओबीसी नेताओं को सपा में दनादन ज्वाइनिंग इसी कड़ी का हिस्सा है। 100 से ज्यादा ओबीसी और दलित नेताओं को सपा में शामिल कराया जा चुका है।

गैर यादव ओबीसी नेता जैसे राजाराम पाल, राजपाल सैनी, रामप्रसाद चैधरी, बालकुमार पटेल, शिवशंकर पटेल, दयाराम पाल, सुखदेव राजभर, कालीचरण राजभर, परशुराम निषाद, उत्तम चंद्र लोधी, एचएन पटेल और रामप्रकाश कुशवाहा शामिल हुए तो बीएसपी के पूर्व यूपी अध्यक्ष आरएस कुशवाहा, वरिष्ठ नेता लालजी वर्मा और रामअचल राजभर ने अखिलेश यादव से मुलाकात की। ये तीनों बड़े ओबीसी नेता सपा में शामिल हो सकते हैं।

बीएसपी विधायक हाकिम लाल बिंद और सुषमा पटेल भी पाला बदल सकती हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी और सपा के गठबंधन के बाद दलित वोट बैंक पर फोकस किया है।

कुछ महीनों में पूर्वी यूपी से लेकर पश्चिमी यूपी तक कई दलित चेहरेजैसे इंद्रजीत सरोज, आरके चैधरी, सीएल वर्मा, गयादीन अनुरागी, त्रिभुवन दत्त, केके गौतम, योगेश वर्मा, जितेन्द्र कुमार, राहुल भारती और तिलकचंद्र अहिरवार सपाई हो चुके हैं।

समाजवादी विजय यात्रा के दूसरे दिन बुंदेलखंड के जालौन में महान दल के कार्यक्रम में अखिलेश शामिल हुए।

महान दल को शाक्य, कुशवाहा, सैनी, मौर्य वोट के लिए जाना जाता है तो वहीं कानपुर देहात में जनवादी पार्टी की रैली को रथयात्रा के साथ जोड़ा।

जनवादी पार्टी अति पिछड़े चैहान लोनिया वोट पर काम करती है।यूपी चुनाव के लिए सपा का महान दल और जनवादी पार्टी के साथ गठबंधन है।

ओबीसी वोट बहुत महत्वपूर्ण है ,इसीलिए बीजेपी ने केंद्र और यूपी सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों को प्राथमिकता दी।

बीजेपी का ओबीसी वोट बैंक के लिए ही अपना दल एस से याराना है। पिछले 3 चुनावों में ओबोसी वोटर बीजेपी पर मेहरबान रहे,अब क्या करेंगे, अभी कह पाना शायद मुमकिन नहीं है।

अखिलेश यादव ओबीसी वोट बैंक को कितना पाले में ला सकेंगे ,यह भी मतदाता के मूड पर निर्भर करेगा। यह भी सच है कि जिधर ओबीसी झुके उधर का पलड़ा भारी होगा और सिंहासन उसे ही मिलेगा।

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