आतंक की आहट

बृहस्पतिवार को फिर आतंकवादियों ने घाटी में आम लोगों को हमले का शिकार बनाया। एक सरकारी स्कूल में घुसकर महिला प्रिंसिपल व एक अध्यापक की निर्मम हत्या कर दी गई। पिछले पांच दिनों में आम लोगों पर यह सातवां हमला था। इससे पहले मंगलवार को आतंकवादियों ने प्रसिद्ध फॉर्मासिस्ट माखनलाल बिंद्रू की, उनकी दुकान में गोली मारकर हत्या कर दी थी। बिंद्रू नब्बे के दशक में आतंकवाद के चरम के दौर में अन्य कश्मीरी पंडितों की तरह घाटी छोड़कर नहीं गये थे।

उनके मेडिकल स्टोर को अन्य जगह आसानी से न मिलने वाली दवाइयों की अंतिम उम्मीद कहा जाता था। वे कश्मीरियों की सेवा के चलते बड़े सम्मान से देखे जाते थे। वहीं एक पानी-पूरी बेचने वाले बिहार के व्यक्ति व एक टैक्सी यूनियन के व्यक्ति को इसी दिन मारा गया।

शनिवार को भी दो लोगों की हत्या की गई थी। जाहिरा तौर पर घाटी में सांप्रदायिक सौहार्द खत्म करने के लिये आम लोगों को साजिशन निशाना बनाया जा रहा है। हताशा में आतंकवादी कश्मीर में अमन-चैन व भाईचारे को खत्म करने के लिये षड्यंत्र रच रहे हैं।

ऐसे वक्त में जब कश्मीर में लंबे अशांति काल के बाद जन-जीवन पटरी पर लौटने लगा तो यह अमन-चैन आतंकवादियों को रास नहीं आ रहा है। केंद्र सरकार की विस्थापित कश्मीर पंडितों के पुनर्वास की नई कोशिशों के बीच उन पंडितों को निशाना बनाया जा रहा है जिन्होंने अभी तक घाटी में आतंक के आगे घुटने नहीं टेके।

वास्तव में सेना व सुरक्षा बलों के चौतरफा दबाव के चलते आतंकवादियों की सप्लाई चेन टूटती नजर आ रही है। एक ओर उन पर सेना व अर्द्ध सैनिक बलों का शिकंजा कसा है तो वहीं स्थानीय लोगों का पहले जैसा समर्थन उन्हें नहीं मिल पा रहा है। अब आम लोग आतंकवादियों को बचाने के लिये पहले जैसी मानव ढाल नहीं बनते।

कट्टरपंथी ताकतों व संगठनों पर पुलिस व कानून का शिकंजा कसा है। सीमा पर बढ़ी चौकसी से उन्हें पाकिस्तान से मिलने वाली मदद भी पहले की तरह नहीं मिल पा रही है। अब उनके समर्थन में पहले जैसी पत्थरबाजी भी नहीं होती।

दरअसल, अब आम लोग महसूस करने लगे हैं कि कश्मीर का विकास देश की मुख्यधारा से जुड़कर ही संभव है। वे रोजगार व कारोबारों को नये सिरे से स्थापित कर रहे हैं। यही बात आतंकवादियों और सीमा पार बैठे उनके आकाओं को रास नहीं आ रही है।

दूसरी ओर सुरक्षा बलों की निरंतर कार्रवाइयों में बड़ी संख्या में आतंकवादियों के मारे जाने से उनके आका बौखलाए हुए हैं। सेना व सुरक्षाबलों से मुकाबला न कर पाने की स्थिति में निहत्थे लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। उनकी आर्थिक मदद करने वालों पर भी सख्त शिकंजा कसा गया है।

पाकिस्तान से संचालित आतंकी संगठन इसी हताशा में आम लोगों को निशाना बनाकर भय का माहौल बनाना चाह रहे हैं। लेकिन वे भूल जायें कि नब्बे के दौर जैसा आतंक का माहौल, वे फिर से बना पायेंगे। बहरहाल, जिस तरह से घाटी में आम लोगों पर हमले हो रहे हैं, उसे आतंकवाद की नई दस्तक माना जा सकता है, जो हमें और अधिक सतर्क होने का संदेश देती है।

जहां एक बार फिर घुसपैठ पर पैनी निगाह रखने की जरूरत है, वहीं तलाशी व निगरानी अभियान को नये सिरे से चलाये जाने की भी जरूरत है। बहुत संभव है कि हताशा के चलते पाक पोषित आतंकी संगठनों ने आतंक फैलाने के लिये स्थानीय स्लीपर सेलों की मदद लेनी शुरू कर दी हो, जिन पर भी निगरानी रखने की जरूरत है।

ऐसा इसलिए भी जरूरी है कि जम्मू कश्मीर से विशेष प्रावधान हटाये जाने के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की सभी कोशिशें विफल होने और अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद पाक घाटी में फिर से हिंसा का नया दौर लाने की बड़ी साजिशें रच सकता है। इस नयी चुनौती का मुकाबला करने के लिये एलओसी और केंद्रशासित प्रदेश के भीतर ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।

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