समर्पण की प्रेरणा

बंगाल के सुविख्यात विद्वान श्यामसुंदर चक्रवती को सन‍् 1902 में स्वाधीनता संग्राम में बढ़-चढ़कर भाग लेने के आरोप में गिरफ्तार कर बर्मा ले जाकर नजरबंद कर दिया गया था। वे वहां बगीचे से तरह-तरह के पुष्प तोड़कर लाते और उन्हें घंटों-घंटों निहारते।

फिर उन पुष्पों को अपने इष्टदेव भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा पर चढ़ाते। एक बर्मी विद्वान ने चक्रवर्ती के पुष्प-प्रेम को देखा तो पूछ लिया, ‘आपको पुष्पों से इतना प्रेम क्‍यों है?’ चक्रवर्ती ने कहा, ‘इन पुष्पों से ही मुझे अपने राष्ट्र अपने धर्म, अपने समाज तथा अपने इष्टदेव के प्रति आत्मसमर्पण की प्रेरणा प्राप्त हुई है।

जिस प्रकार पुष्प अपनी तनिक भी चिंता किए बिना देवताओं के चरणों में समर्पित होते ही अपनी सार्थकता मान लेता है उसी प्रकार हमें भी बिना किसी इच्छा के समर्पण भाव से सेवा करने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।’

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