वैक्सीनेशन की चुनौती

ऐसे वक्त में जब देश में कोरोना संकट की दूसरी लहर गंभीर स्थिति पैदा कर रही है, वैक्सीन ही अंतिम कारगर उपाय नजर आता है। शुक्रवार को संक्रमितों का आंकड़ा 1.30 लाख पार कर जाना चिंता बढ़ाने वाला है।

ऐसे में बचाव के परंपरागत उपायों के साथ टीकाकरण अभियान को गति देने की जरूरत है ताकि देश लॉकडाउन जैसे उपायों से परहेज कर सके। पिछली बार सख्ती से जहां देश की आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल असर पड़ा था, वहीं एक बड़ी आबादी को शहरों से गांवों की ओर विस्थापित होना पड़ा था

बड़े पैमाने पर रोजगार का संकट भी पैदा हुआ था। बहरहाल,नयी चुनौती के बीच दिल्ली, महाराष्ट्र और पंजाब समेत कई राज्यों ने रात्रि कर्फ्यू जैसे उपायों को अपनाना शुरू कर भी दिया है। आंशिक बंदी, कन्टेनमेंट जोन बनाने और सार्वजनिक सभाओं पर रोक लगायी जा रही है।

ऐसे में टीकाकरण अभियान लक्षित वर्ग विशेष व आयु वर्ग के हिसाब से देश में चल रहा है। स्वास्थ्यकर्मियों, फ्रंटलाइन वर्करों, साठ साल से अधिक आयु वर्ग के लोगों को टीकाकरण का लाभ देने के बाद अब 45 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के लोगों को टीका लगाने का कार्य शुरू हो चुका है।

लेकिन एक तथ्य यह भी है कि 45 आयु वर्ग से नीचे के लोगों को भी कोरोना अपना शिकार बनाता रहा है, जिसके लिये भी टीकाकरण की जरूरत महसूस की जा रही है। दरअसल, टीकाकरण अभियान की विसंगतियों को दूर करके इस अभियान में तेजी लाने की जरूरत है।

वैक्सीन आपूर्ति को लेकर गैर भाजपा शासित राज्यों की शिकायतों के बाद आरोपों-प्रत्यारोपों का सिलसिला भी जारी है। वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री इस मुद्दे पर राजनीतिक बयानबाजी को अनुचित बताते हैं और कहते हैं कि पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन की आपूर्ति की जा रही है।

उनका मानना है कि ऐसी बयानबाजी से जहां लोगों का मनोबल प्रभावित होता है, वहीं देश की अंतर्राष्ट्रीय छवि पर प्रतिकूल असर पड़ता है।वहीं दिल्ली सरकार के सभी वर्ग के लोगों के लिये वैक्सीनेशन शुरू करने के सुझाव के बाबत केंद्रीय मंत्री कहते हैं कि अब तक लक्षित समूहों का टीकाकरण का लक्ष्य पूरा न करने वाले राज्य सबके लिये टीकाकरण की मांग कर रहे हैं, जो कि तार्किक नहीं है।

निस्संदेह ऐसा कोई टकराव कोरोना के खिलाफ हमारी लड़ाई कमजोर ही करेगा। बहरहाल, कोरोना संकट की भयावहता को देखते हुए कोविड-19 की वैक्सीनों का उत्पादन बढ़ाने की जरूरत महसूस की जा रही है।

दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन उत्पादक कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने वैक्सीन उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिये तीन हजार करोड़ रुपये के अनुदान की मांग की है। निस्संदेह ऐसे मुश्किल वक्त में जीवन रक्षक उद्यम के लिये खजाना खोलने में केंद्र को संकोच नहीं करना चाहिए। प्रयोग की जा रही दो वैक्सीनों के अलावा अन्य वैक्सीनों के उत्पादन पर भी विचार होना चाहिए।

इसी क्रम में रूसी वैक्सीन स्पुतनिक को भी आपातकालीन उपयोग के लिये उत्पादन हेतु अनुमति दिये जाने की जरूरत है। इस बाबत रूसी निवेश के जरिये भारतीय कंपनियों के साथ देश में वैक्सीन उत्पादन के लिये करार किया गया है।

इस मुहिम के सिरे चढ़ने से वैक्सीनेशन अभियान में तेजी आयेगी। दरअसल, अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों के चलते सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को वैक्सीन की सप्लाई में तेजी लाने में दिक्कत आ रही है।

उसका कहना है कि अमेरिका व यूरोपीय देशों द्वारा वैक्सीन में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल के निर्यात पर रोक लगाने से उत्पादन प्रभावित हुआ है। वहीं अंतर्राष्ट्रीय कोवैक्स कार्यक्रम के तहत वैक्सीन देने के लिये सीरम इंस्टीट्यूट कानूनी रूप से बाध्यकारी है।

उसे ग्लोबल अलायंस फॉर वैक्सीन्स एंड इम्युनाइजेशन के तहत विकासशील मुल्कों को वैक्सीन देनी ही होगी। वहीं मांग की जा रही है कि देश में कोरोना संक्रमितों के आंकड़ों में तेजी के बाद वैक्सीन डिप्लोमैसी बंद की जानी चाहिए और पहले घरेलू जरूरतों को पूरा किया जाना चाहिए।

वैसे पिछले माह संसद में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री आश्वासन दे चुके हैं कि भारतीयों की कीमत पर वैक्सीन का निर्यात नहीं किया जायेगा।

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