गर्मी के तेवर

इसे कुदरत का खेल कहें या जलवायु परिवर्तन की चुनौती कि ठंड खत्म होते-होते तेज गर्मी ने दस्तक दे दी। मौसम की यह तल्खी आम लोगों की चिंताएं बढ़ाने वाली है। यूं तो मौसम के चक्र में बदलाव आना प्रकृति का सामान्य नियम है, लेकिन उसकी तीव्रता मुश्किलें बढ़ाने वाली होती है।

होली के दौरान मौसम में आया अचानक बदलाव ऐसी ही असहजता पैदा कर गया। होली वाले दिन देश की राजधानी में पारे का 76 साल का रिकॉर्ड तोड़ना वाकई हैरान करने वाला रहा। चौंकाने वाली बात यह रही कि यह तापमान औसत तापमान से आठ डिग्री अधिक रहा, जिसे 40.1 डिग्री सेल्सियस मापा गया।

दरअसल, मौसम में धीरे-धीरे होने वाला बदलाव इतना नहीं अखरता, जितना कि अचानक बढ़ने वाला तापमान अखरता है, जो कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी हानिकारक साबित हो सकता है। तापमान में आई इस तेजी के साथ ही दिल्ली में धूलभरी आंधी ने लोगों की मुश्किलें भी बढ़ायी।

बहरहाल, तापमान में आई यह तेजी इस बात का संकेत भी माना जा सकता है कि आने वाले महीनों में मौसम की तल्खी का लोगों को सामना करना पड़ सकता है। यह लोगों में एक सवाल भी पैदा कर रहा है कि मई-जून में क्या स्थिति होगी।

स्वाभाविक रूप से मार्च में तापमान का चालीस डिग्री से ऊपर चला जाना चिंता का सबब है। दरअसल, मौसम में आया यह बदलाव कम-ज्यादा पूरे देश में महसूस किया जा रहा है।

राजस्थान, ओडिशा, गुजरात तथा हरियाणा आदि राज्यों के कुछ इलाकों में गर्मी की तपिश ज्यादा महसूस की जा रही है, जो कमोबेश असामान्य स्थिति की ओर इशारा करती है। इसे तकनीकी भाषा में लू के करीब माना जा सकता है।

निस्संदेह मार्च के माह में ऐसी स्थिति स्वाभाविक ही चिंता का विषय है। कोरोना संकट से जूझ रहे देश में तापमान में आया अप्रत्याशित बदलाव कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी मुश्किलें बढ़ा सकता है। फिर मौसम के बदलाव के साथ होने वाली बीमारियों के फैलने की आशंका बनी रहती है।

ऐसे में सरकारों और आम लोगों के स्तर पर मौसम की तल्खी से निपटने के लिये पर्याप्त तैयारियां करनी होंगी। ग्लोबल वार्मिंग के चलते पूरी दुनिया में मौसम के मिजाज में जिस तेजी से बदलाव आ रहा है, उसकी चुनौती से मुकाबले के लिये हमें तैयार रहना होगा।

शारीरिक रूप से भी और मानसिक रूप से भी। दरअसल, मानव जीवन में पिछले कुछ दशकों में जो कृत्रिमता आई है उसने मौसम में बदलाव को मुश्किल के रूप में देखा है। आम तौर पर हमारी जीवन शैली जितनी प्रकृति के करीब होगी, उसमें आने वाले बदलावों को हम उतनी सहजता के साथ स्वीकार कर सकेंगे।

विडंबना यह है कि मौसम की तल्खी के साथ पूरी दुनिया में बाजार जुड़ गया है, जो मौसम के बदलाव को भयावह रूप में प्रस्तुत करके कारोबार करता है। कहीं न कहीं मीडिया का भी दोष है जो मौसम की तल्खी को एक बड़ी खबर के रूप में पेश करता है, जिससे आम लोगों में कई तरह की चिंताएं पैदा हो जाती हैं। दरअसल, हमें मौसम के बदलाव के साथ जीना सीखना चाहिए।

मौसम के तल्ख बदलाव जहां सरकारों को विकास योजनाओं को पर्यावरण के अनुकूल बनाने हेतु विचार करने का मौका देते हैं, वहीं आम लोगों को भी चेताते हैं कि पर्यावरण रक्षा का संकल्प लें। प्रकृति के साथ सदियों पुराना सद्भाव हमें मौसम की तल्खी से बचा सकता है।

साथ ही हमें हमारे पुरखों से हासिल मौसम की तल्खी से निपटने के उपायों पर गौर करना होगा। खान-पान की प्रकृति का भी ध्यान रखना होगा। हमें अपनी खाद्य शृंखला में भी मौसम की चुनौती का मुकाबला करने वाले आहार-व्यवहार को शामिल करना होगा।

यानी मौसम में आ रहे बदलावों को एक सत्य मानकर उसी के अनुरूप अपना जीवन ढालने की जरूरत है। इस दिशा में चिकित्सकों और वैज्ञानिकों को बेहतर काम करके मानवता की रक्षा का संकल्प लेना होगा।

साथ ही पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन के संकटों को देखते हुए सरकार व नागरिक स्तर पर रचनात्मक पहल करनी होगी।

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