मानवता की सेवा

महाराष्ट्र के प्रसिद्ध विद्वान पंडित परचुरे शास्त्री को अनायास कोढ़ की व्याधि हो गई, तो उनके परिवारजनों और समाज ने उन्हें उपेक्षित कर दिया। घोर निराशा और हताशा में शास्त्री जी ने तय किया कि अंतिम समय अब महात्मा गांधी के सेवाग्राम में ही बिताएंगे।

वे एक निर्जन मार्ग में लेट गए। उन्हें बहुत से लोगों ने देखा, लेकिन कोढ़ से डरकर कोई सेवा के लिए आगे नहीं आया। जैसे ही बापू को यह बात पता चली, बापू तुरंत शास्त्री जी को आश्रम ले आए और महीनों तक उन की सेवा की। शास्त्री जी बापू के व्यवहार से स्वस्थ हो गए और फिर उन्होंने कोढि़यों की सेवा में स्वयं को समर्पित कर दिया और बापू के ही हो गए।

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