संस्कारों का बीजारोपण

गांव के एक सम्भ्रांत परिवार में एक मेहमान आया। परिवार के मुखिया समेत सभी ने मेहमान की खूब ख़ातिरदारी की। मेहमान की सुख-सुविधा का ध्यान रखने के लिए परिवार की महिलाएं और पुरुष सदैव उनकी सेवा में तत्पर रहे।

पूरे परिवार के सेवा-भाव से मेहमान को अति प्रसन्नता हुई। कुछ दिन पश्चात जब मेहमान विदा होने लगा तो उन्हें गांव की सीमा तक विदा करने घर के मुखिया के साथ-साथ उनका पांच वर्षीय पोता भी चल दिया। कुछ दूर चलने के पश्चात मेहमान बोला, ‘काका, आपके दिए आदर-सत्कार के लिए आपका आभारी हूं।

अब आप घर जाइए, नहीं तो आपका पोता थक जाएगा।’ मुखिया बोले, ‘आपने हमें मेहमाननवाजी का अवसर दिया, यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है। मेहमान हमारे लिए देवता के समान होता है।

रही बात मेरे पोते की, तो यह सही उम्र है उसमें संस्कारों के बीजारोपण की। वास्तव में मेरा पोता भी मेहमानों का आदर सत्कार सीखे, इसलिए भी इसका मेरे साथ चलना आवश्यक है।’

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